Skip to main content

MENU👈

Show more

Daily Current Affairs: 27 April 2025

दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...

Does India Really Need US Funding? A Strategic Analysis

यह संपादकीय लेख अमेरिका द्वारा भारत को दी जाने वाली $21 मिलियन की ‘वोटर टर्नआउट’ फंडिंग को रद्द करने के निर्णय पर केंद्रित है। इसमें इस फैसले के पीछे के तर्क, भारत की आर्थिक स्थिति, अमेरिका की सहायता नीति में बदलाव और भारत-अमेरिका संबंधों पर संभावित प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। लेख इस सवाल का भी जवाब देता है कि क्या भारत को वास्तव में इस तरह की विदेशी फंडिंग की आवश्यकता है, और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में आगे बढ़ने के लिए हमें किन नीतियों को अपनाना चाहिए।

"Does India Really Need US Funding? A Strategic Analysis"

भारत को अमेरिकी फंडिंग की जरूरत क्यों नहीं?

हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को दी जाने वाली $21 मिलियन की ‘वोटर टर्नआउट’ फंडिंग को रद्द करने के फैसले का बचाव किया। उनका तर्क था कि भारत एक समृद्ध देश है, जो दुनिया के सबसे अधिक कर लगाने वाले देशों में से एक है, इसलिए उसे अमेरिकी फंडिंग की आवश्यकता नहीं है। ट्रंप का यह बयान कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है—आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक। यह केवल भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति में बदलती प्राथमिकताओं को भी दर्शाता है।

क्या थी यह फंडिंग और इसका उद्देश्य?

अमेरिका की डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एजेंसियां समय-समय पर विभिन्न देशों में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करने के लिए फंडिंग प्रदान करती हैं। भारत के संदर्भ में यह फंड मुख्य रूप से चुनावों में मतदाता भागीदारी बढ़ाने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने के लिए दिया जाना था। लेकिन जब अमेरिका ने इस फंड को रद्द करने का फैसला किया, तो इसने एक व्यापक बहस को जन्म दिया—क्या भारत को वास्तव में इस फंड की जरूरत थी?

भारत की आर्थिक स्थिति और आत्मनिर्भरता

भारत आज दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। 2023-24 में भारत की जीडीपी 3.7 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो चुकी है और यह लगातार उच्च विकास दर बनाए हुए है। भारत सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत देश को आर्थिक रूप से और भी सशक्त बनाने की दिशा में कदम उठाए हैं। भारत विदेशी निवेश को आकर्षित करने, व्यापारिक सुधारों को लागू करने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है।

यदि हम भारत की मौजूदा वित्तीय स्थिति को देखें, तो यह स्पष्ट होता है कि भारत को छोटे-मोटे विदेशी अनुदानों की आवश्यकता नहीं है। भारत के पास अपने लोकतांत्रिक संस्थानों और चुनावी प्रक्रिया को चलाने के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं। 2024 के आम चुनावों के लिए भारत का निर्वाचन आयोग करीब 20,000 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। ऐसे में, मात्र 21 मिलियन डॉलर (लगभग 170 करोड़ रुपये) की अमेरिकी सहायता का महत्व सीमित ही था।

अमेरिकी सहायता और उसकी प्राथमिकताएं

अमेरिका लंबे समय से विभिन्न देशों को लोकतंत्र को मजबूत करने के नाम पर आर्थिक सहायता देता आया है। लेकिन ट्रंप प्रशासन की नीति हमेशा से ‘अमेरिका फर्स्ट’ पर केंद्रित रही है। वे चाहते थे कि अमेरिकी धन केवल उन्हीं देशों को दिया जाए जो वास्तव में जरूरतमंद हैं या जिनसे अमेरिका को रणनीतिक लाभ हो।

इस संदर्भ में ट्रंप का यह तर्क कि भारत को अमेरिकी करदाताओं के पैसे की आवश्यकता नहीं है, काफी हद तक सही भी है। भारत आज अपनी चुनावी प्रणाली को सुचारू रूप से संचालित करने में सक्षम है और उसे बाहरी वित्तीय सहायता पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है।

भारत-अमेरिका संबंधों पर प्रभाव

हालांकि इस फंडिंग को रद्द करने का भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण संकेत जरूर है। अमेरिका अब भारत को एक आर्थिक शक्ति के रूप में देख रहा है और यह मान रहा है कि भारत को छोटी-मोटी विदेशी सहायता की जरूरत नहीं है।

भारत और अमेरिका के संबंध पिछले दो दशकों में काफी मजबूत हुए हैं। रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और शिक्षा के क्षेत्र में दोनों देश घनिष्ठ सहयोग कर रहे हैं। क्वाड (QUAD) और इंडो-पैसिफिक रणनीति में भारत की भूमिका को अमेरिका ने काफी महत्व दिया है। ऐसे में, इस छोटे से फंडिंग फैसले से द्विपक्षीय संबंधों में कोई बड़ी दरार नहीं आएगी, लेकिन यह जरूर दिखाता है कि अमेरिका की प्राथमिकताएं बदल रही हैं।

भारत के लिए सबक और आगे की राह

यह घटना भारत के लिए एक सबक भी है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमें वास्तव में किसी भी प्रकार की विदेशी सहायता की आवश्यकता होनी चाहिए? भारत को अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए बाहरी फंडिंग की बजाय आंतरिक संसाधनों पर निर्भर रहना चाहिए।

भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक तंत्र है, और इसकी चुनावी प्रक्रिया को दुनिया भर में एक आदर्श मॉडल के रूप में देखा जाता है। मतदाता जागरूकता बढ़ाने और चुनावी सुधारों को लागू करने के लिए भारत को अपने संसाधनों का उपयोग करना चाहिए, न कि विदेशी अनुदानों पर निर्भर रहना चाहिए।

अमेरिका की नीति में बदलाव और भविष्य की संभावना

ट्रंप द्वारा यह फंड रद्द किया जाना इस बात का भी संकेत देता है कि अमेरिका अपनी सहायता नीति में बड़े बदलाव कर रहा है। अब वह केवल उन्हीं देशों को सहायता देना चाहता है जो वास्तव में आर्थिक रूप से कमजोर हैं। इसके अलावा, अमेरिका अब रणनीतिक साझेदारियों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है, बजाय इसके कि वह हर देश को आर्थिक मदद देता रहे।

यदि भविष्य में अमेरिका फिर से भारत को किसी अन्य रूप में वित्तीय सहायता की पेशकश करता है, तो भारत को इस पर विचार करना चाहिए कि क्या यह उसके दीर्घकालिक हित में है या नहीं। भारत को उन साझेदारियों की ओर देखना चाहिए जो तकनीकी, रक्षा और व्यापार के क्षेत्र में लाभदायक हों, न कि छोटी-मोटी अनुदान राशि पर निर्भरता बनाए रखने वाली।

निष्कर्ष

भारत को अमेरिकी ‘वोटर टर्नआउट’ फंडिंग की जरूरत नहीं थी, और ट्रंप का इसे रद्द करने का निर्णय आर्थिक दृष्टि से पूरी तरह उचित था। भारत को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ना चाहिए और अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं को बाहरी सहायता के बिना सुदृढ़ करना चाहिए।

यह निर्णय भारत-अमेरिका संबंधों में किसी बड़ी बाधा का संकेत नहीं देता, बल्कि यह दिखाता है कि अमेरिका अब भारत को एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में देख रहा है। भारत को इसे एक अवसर के रूप में लेना चाहिए और अपनी नीतियों को इस तरह से विकसित करना चाहिए कि वह पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन सके।

इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि भारत को अब विदेशी सहायता पर निर्भरता छोड़कर अपने संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना चाहिए। एक सशक्त लोकतंत्र और मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में, भारत को अब वैश्विक मंच पर और अधिक आत्मनिर्भर और प्रभावशाली भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना चाहिए।


Previous & Next Post in Blogger
|
✍️ARVIND SINGH PK REWA

Comments

Advertisement

POPULAR POSTS