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Daily Current Affairs: 27 April 2025

दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...

George Soros and Indian Politics: Influence, Controversies, and Reality

यह लेख जार्ज सोरोस और उनके भारतीय राजनीति में प्रभाव पर केंद्रित है। इसमें उनकी विचारधारा, ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF) के जरिए भारत में फंडिंग, उनके विवादास्पद बयान, और भारत सरकार की प्रतिक्रिया पर विस्तार से चर्चा की गई है। लेख में यह भी बताया गया है कि कैसे उनके समर्थक उन्हें लोकतंत्र और मानवाधिकारों का रक्षक मानते हैं, जबकि उनके आलोचक उन्हें भारत की संप्रभुता में हस्तक्षेप करने वाला बताते हैं। इस विश्लेषण के जरिए पाठक यह समझ सकते हैं कि जार्ज सोरोस भारतीय राजनीति और नीतियों को किस हद तक प्रभावित करते हैं और उन पर उठने वाले विवादों की सच्चाई क्या है।

George Soros and Indian Politics: Influence, Controversies, and Reality


 जार्ज सोरोस और भारतीय राजनीति: प्रभाव, विवाद और सच्चाई

जार्ज सोरोस दुनिया के सबसे प्रभावशाली निवेशकों और परोपकारियों में से एक माने जाते हैं। वे ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF) के संस्थापक हैं, जो दुनिया भर में लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। हालांकि, उनकी गतिविधियों को लेकर वैश्विक राजनीति में काफी विवाद रहा है, और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। भारतीय राजनीति में उनकी भूमिका और प्रभाव को लेकर दो पक्ष हैं—कुछ लोग उन्हें लोकतंत्र का रक्षक मानते हैं, तो कुछ उन्हें भारत की संप्रभुता में हस्तक्षेप करने वाला व्यक्ति मानते हैं।

जार्ज सोरोस और उनकी विचारधारा

जार्ज सोरोस का जन्म 12 अगस्त 1930 को हंगरी में हुआ था। उन्होंने नाज़ी शासन के दौरान कई कठिनाइयाँ झेलीं और बाद में ब्रिटेन के लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने अपनी संपत्ति हेज फंड निवेश के जरिए बनाई और सोरोस फंड मैनेजमेंट की स्थापना की।

उन्होंने 1979 में ओपन सोसाइटी फाउंडेशन की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकारों का समर्थन करना है। उनके द्वारा विभिन्न देशों में दी गई आर्थिक सहायता को लेकर कई सरकारों ने संदेह जताया है। रूस, चीन और कुछ अन्य देशों ने उनके संगठनों पर प्रतिबंध भी लगा दिया है।

भारतीय राजनीति में जार्ज सोरोस की भूमिका

जार्ज सोरोस का भारत में कोई प्रत्यक्ष राजनीतिक दखल नहीं है, लेकिन उनकी गतिविधियाँ और बयान भारतीय राजनीति को प्रभावित करते रहे हैं। उनका प्रभाव मुख्यतः तीन पहलुओं में देखा जा सकता है:

1. भारतीय लोकतंत्र पर उनके बयान और विवाद

जार्ज सोरोस ने भारतीय राजनीति को लेकर कई बार बयान दिए हैं, जो अक्सर विवादों में घिर जाते हैं।

2023 में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में उन्होंने कहा कि अदानी समूह का संकट भारतीय लोकतंत्र में बदलाव ला सकता है।

उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अदानी के बीच करीबी संबंध हैं, और अदानी समूह की वित्तीय गिरावट मोदी सरकार के लिए संकट खड़ा कर सकती है।

इस बयान के बाद भारत सरकार ने उन्हें "विदेशी एजेंडा चलाने वाला" करार दिया और कहा कि वे भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।

कई नेताओं और विश्लेषकों ने उनके इस बयान को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बताया।

2. ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF) और भारत में फंडिंग

जार्ज सोरोस की संस्था ओपन सोसाइटी फाउंडेशन भारत में कई NGO और संगठनों को वित्तीय सहायता देती रही है।

ये संगठन मानवाधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र से जुड़े मुद्दों पर काम करते हैं।

हालांकि, 2016 में भारत सरकार ने विदेशी फंडिंग के नियमों को सख्त कर दिया और कई NGO की फंडिंग रोक दी, जिनमें कुछ सोरोस से जुड़े संगठन भी शामिल थे।

2020 में भारत सरकार ने OSF से जुड़ी संस्थाओं पर कड़ी निगरानी शुरू की, जिससे इन संगठनों की गतिविधियाँ सीमित हो गईं।

भारतीय सरकार का मानना है कि कुछ विदेशी फंडिंग एजेंसियाँ भारत की आंतरिक राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं।

3. भारतीय राजनीति में विभाजित राय

जार्ज सोरोस को लेकर भारत में अलग-अलग दृष्टिकोण हैं।

विपक्षी दलों और उदारवादी समूहों का मानना है कि वे लोकतंत्र और मानवाधिकारों को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रवादी समूहों का कहना है कि वे भारत की संप्रभुता में हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे हैं।

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि सोरोस का उद्देश्य भारत में सामाजिक अस्थिरता को बढ़ावा देना है, जबकि कुछ का मानना है कि वे केवल लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना चाहते हैं।

भारत सरकार का रुख और प्रतिक्रिया

भारतीय सरकार ने जार्ज सोरोस और उनकी संस्थाओं के खिलाफ कई कदम उठाए हैं:

1. FCRA कानून को सख्त किया गया – जिससे विदेशी फंडिंग पर अधिक नियंत्रण हो गया।

2. OSF से जुड़ी संस्थाओं की फंडिंग पर प्रतिबंध लगाया गया – जिससे इन संगठनों की गतिविधियाँ सीमित हो गईं।

3. सोरोस के बयानों की आधिकारिक रूप से निंदा की गई – भारत सरकार ने कहा कि वे भारत-विरोधी ताकतों को समर्थन दे रहे हैं।

हालांकि, सोरोस और उनके समर्थकों का कहना है कि वे केवल लोकतंत्र, पारदर्शिता और मानवाधिकारों को बढ़ावा देना चाहते हैं।

सोरोस पर आलोचनाएँ और वैश्विक विवाद

जार्ज सोरोस केवल भारत में ही नहीं, बल्कि कई देशों में विवादों में रहे हैं।

रूस ने उनकी संस्था को "राष्ट्र-विरोधी संगठन" घोषित कर दिया और बैन लगा दिया।

चीन ने भी उनकी गतिविधियों पर सख्त प्रतिबंध लगाए।

हंगरी की सरकार ने उन्हें "राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा" बताया।

अमेरिका और यूरोप में भी कई नेता उन पर राजनीतिक हस्तक्षेप और वित्तीय बाज़ार को प्रभावित करने के आरोप लगाते रहे हैं।

क्या जार्ज सोरोस भारत के लिए खतरा हैं?

जार्ज सोरोस को लेकर भारत में दो तरह की राय है:

1. उनके समर्थकों का कहना है कि

वे लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा कर रहे हैं।

वे स्वतंत्र मीडिया और पारदर्शिता को बढ़ावा देना चाहते हैं।

उनका उद्देश्य लोकतांत्रिक सुधार और सामाजिक न्याय को मजबूत करना है।

2. उनके आलोचकों का कहना है कि

वे भारत की आंतरिक राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।

उनकी फंडिंग से कुछ संगठन अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर सकते हैं।

वे भारतीय संप्रभुता और सरकार के खिलाफ वैश्विक नैरेटिव बना रहे हैं।

निष्कर्ष

जार्ज सोरोस भारतीय राजनीति में कोई सीधा दखल नहीं रखते, लेकिन उनके बयान और उनकी संस्था की फंडिंग को लेकर विवाद बना रहता है। भारत सरकार उन्हें एक विदेशी हस्तक्षेपकारी ताकत मानती है, जबकि कुछ लोग उन्हें लोकतंत्र के समर्थक के रूप में देखते हैं।

उनकी फंडिंग और विचारधारा को लेकर दुनिया भर में बहस जारी है। भारत में सरकार ने उनके संगठनों पर कड़ी निगरानी रखी है, जिससे उनका प्रभाव सीमित हो गया है। यह कहना कठिन है कि वे भारत के लिए खतरा हैं या लोकतंत्र के समर्थक, लेकिन इतना निश्चित है कि उनका नाम भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बना रहेगा।


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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