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Daily Current Affairs: 27 April 2025

दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...

Pandit Deendayal Upadhyaya: Life and Contributions

 पंडित दीनदयाल उपाध्याय: जीवन और योगदान

भारत का राजनीतिक और सामाजिक इतिहास महान विचारकों और नेताओं से भरा पड़ा है, जिन्होंने देश की उन्नति और सामाजिक समरसता के लिए कार्य किया। इनमें से एक प्रमुख नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय का है। उनकी पुण्यतिथि पर जब हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, तब उनके जीवन और योगदान को याद करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय न केवल एक महान विचारक थे, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज की जड़ों में व्याप्त असमानताओं और विषमताओं को समझकर उनके समाधान के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया। उनके विचारों ने भारतीय जनसंघ की नींव रखी और उन्होंने भारतीय समाज की समग्र दृष्टि से सेवा की, जिसका उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर और आत्मसम्मान के साथ एक प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में स्थापित करना था।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नगला चंद्रभान नामक गांव में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य थी, लेकिन उनके घर में सांस्कृतिक और धार्मिक शिक्षा का गहरा प्रभाव था। पंडित जी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, और उन्होंने बहुत ही छोटी उम्र से अपने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझ लिया था। उन्होंने अपनी शिक्षा की शुरुआत मथुरा से की और बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का राजनीतिक जीवन भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से प्रेरित था। उन्होंने भारतीय जनसंघ में कार्य करना शुरू किया, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का रूप बन गया। पंडित जी का विश्वास था कि भारतीय समाज को अपनी पुरानी धरोहर से जोड़ते हुए ही एक सशक्त राष्ट्र की स्थापना की जा सकती है। उनका जीवन और कार्य भारतीय समाज के प्रत्येक वर्ग के उत्थान के लिए समर्पित था।

'अंत्योदय' और 'एकात्म मानववाद'

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों में सबसे महत्वपूर्ण थे— 'अंत्योदय' और 'एकात्म मानववाद'। इन दोनों सिद्धांतों ने भारतीय समाज के लिए एक नई दिशा दी और उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग के उत्थान की आवश्यकता को रेखांकित किया।

अंत्योदय का अर्थ है 'समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंचाना'। पंडित जी का मानना था कि किसी भी समाज की प्रगति तभी संभव है, जब समाज के सबसे कमजोर और वंचित वर्ग का उत्थान हो। उन्होंने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया कि सामाजिक और आर्थिक नीतियां ऐसी होनी चाहिए, जो समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए काम करें, विशेषकर उन लोगों के लिए, जो समाज के अंतिम पायदान पर खड़े हैं। उनका कहना था कि समाज का वास्तविक विकास तब ही होगा जब गरीब, शोषित और वंचित वर्ग को समान अवसर मिले और वे स्वावलंबी बन सकें।

एकात्म मानववाद पंडित जी का एक और महत्वपूर्ण सिद्धांत था। इसके अनुसार, मानवता को केवल भौतिक सुख-सुविधाओं से नहीं मापना चाहिए, बल्कि इसे आध्यात्मिक और मानसिक विकास के रूप में भी देखा जाना चाहिए। पंडित जी ने यह स्पष्ट किया कि मनुष्य केवल भौतिक अस्तित्व के लिए नहीं है, बल्कि उसे समाज, संस्कृति, और नैतिक मूल्यों के आधार पर जीवन जीना चाहिए। एकात्म मानववाद का उद्देश्य था एक ऐसा समाज बनाना, जिसमें सभी व्यक्ति एक-दूसरे के साथ समरसता, समानता और सहयोग से रह सकें।

समाज और राष्ट्र के प्रति दृष्टिकोण

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का राष्ट्रवाद एक गहरे और समग्र दृष्टिकोण पर आधारित था। उन्होंने भारतीय समाज की पुरानी संस्कृति और परंपराओं को महत्व दिया, लेकिन साथ ही उन्होंने इसे समय के साथ बदलने और सुधारने की आवश्यकता को भी स्वीकार किया। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति में ही समाज के समग्र विकास की कुंजी है। उन्होंने भारतीय समाज को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, धर्मांधता और सामाजिक विषमताओं को दूर करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका कहना था कि भारतीय समाज का वास्तविक धर्म समरसता, प्रेम और एकता में है। उन्होंने भारतीय संस्कृति के उच्चतम आदर्शों को बढ़ावा दिया और इसके साथ ही उन्होंने विज्ञान, तकनीकी और शिक्षा के महत्व को भी समझा। पंडित जी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कई योजनाओं का प्रस्ताव किया। उनका मानना था कि भारत को विदेशी पूंजी और विचारों से नहीं, बल्कि अपनी घरेलू ताकतों से सशक्त बनाना चाहिए।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का राजनीतिक योगदान

पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे, जिसे बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के रूप में पुनर्गठित किया गया। पंडित जी ने भारतीय राजनीति में एक नयी दिशा दी और पार्टी के विचारधारा को भारतीय सांस्कृतिक और राष्ट्रीयता के सिद्धांतों से जोड़कर इसे एक सशक्त राजनीतिक मंच बनाया। उन्होंने भारतीय जनसंघ को एक ऐसी पार्टी के रूप में स्थापित किया, जो भारतीय सांस्कृतिक और राष्ट्रीयता के सिद्धांतों पर आधारित हो।

उनका मानना था कि भारतीय राजनीति में धर्म और राजनीति का एक समान स्थान होना चाहिए। उन्होंने राजनीति को केवल सत्ता प्राप्ति का साधन नहीं, बल्कि एक मिशन माना, जिसका उद्देश्य समाज की सेवा और देश के विकास के लिए काम करना था। पंडित जी का यह दृष्टिकोण आज भी भारतीय राजनीति में एक मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का आज के संदर्भ में महत्व

आज के समय में जब समाज में असमानताएं, भ्रष्टाचार और सामाजिक विषमताएं बढ़ रही हैं, पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार और सिद्धांतों की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक है। उनके 'अंत्योदय' और 'एकात्म मानववाद' के सिद्धांत आज भी हमें यह याद दिलाते हैं कि समाज के हर वर्ग को समान अवसर और विकास के अवसर मिलना चाहिए।

भारत की राजनीति और समाज में पंडित जी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके विचारों को अपनाकर हम एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं, जो न केवल समृद्ध हो, बल्कि समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए भी समर्पित हो।

निष्कर्ष

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन और उनका कार्य भारतीय समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं। उनके विचारों ने न केवल भारतीय राजनीति को नया दृष्टिकोण दिया, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए समान अवसरों की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके विचारों को आगे बढ़ाने का संकल्प लें, ताकि हम एक ऐसे समाज की स्थापना कर सकें, जो समानता, समरसता और विकास के सिद्धांतों पर आधारित हो।


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

Comments

  1. पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी के बारे मे बहुत बढ़िया लेख है सर

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