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Daily Current Affairs: 27 April 2025

दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...

Ethics: Meaning and Its Importance in Personal and Public Life

 नैतिकता (Ethics) का अर्थ एवं व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में महत्ता

परिचय

नैतिकता (Ethics) वह सिद्धांतों और मूल्यों का समूह है जो यह निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति, समाज या संस्था के लिए क्या सही और क्या गलत है। नैतिकता का आधार मूल रूप से सत्य, ईमानदारी, निष्पक्षता, करुणा, और कर्तव्यपरायणता जैसे गुण होते हैं। यह एक व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है, चाहे वह व्यक्तिगत जीवन हो या सार्वजनिक क्षेत्र।

आज के वैश्विक और जटिल समाज में नैतिकता का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि नैतिक मूल्यों के बिना समाज में अराजकता, भ्रष्टाचार और अन्याय जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए, नैतिकता का पालन न केवल एक अच्छे व्यक्ति के निर्माण में सहायक होता है, बल्कि यह एक सशक्त और पारदर्शी प्रशासन का भी आधार बनता है।

Ethics: Meaning and Its Importance in Personal and Public Life

नैतिकता (Ethics) की परिभाषा और प्रकृति

नैतिकता को विभिन्न दार्शनिकों और विद्वानों ने अलग-अलग तरीकों से परिभाषित किया है:

1. अरस्तू (Aristotle): नैतिकता व्यक्ति के चरित्र और गुणों से संबंधित होती है। उनका मानना था कि एक नैतिक व्यक्ति को "सुनहरा मध्य मार्ग" (Golden Mean) अपनाना चाहिए, जिसमें कोई भी गुण अतिरेक या न्यूनता में नहीं हो।

2. इमैनुएल कांट (Immanuel Kant): उन्होंने नैतिकता को कर्तव्यनिष्ठा (Duty) से जोड़ा और कहा कि सही निर्णय वे होते हैं जो सार्वभौमिक रूप से सही हों।

3. जेरेमी बेंथम (Jeremy Bentham) और जॉन स्टुअर्ट मिल (John Stuart Mill): इन दोनों ने नैतिकता को उपयोगितावादी (Utilitarian) दृष्टिकोण से देखा, जिसका अर्थ है कि नैतिक निर्णय वे होते हैं जो अधिकतम लोगों के लिए अधिकतम लाभ पहुँचाएँ।

नैतिकता के मुख्य लक्षण:

व्यापकता: नैतिकता केवल व्यक्तिगत आचरण तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह समाज, व्यवसाय, राजनीति और प्रशासन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भी लागू होती है।

सार्वभौमिकता: यद्यपि नैतिक मूल्यों की व्याख्या संस्कृति और समाज के अनुसार भिन्न हो सकती है, लेकिन सत्य, न्याय, करुणा और निष्ठा जैसे मूल तत्व विश्व स्तर पर मान्य होते हैं।

गतिशीलता: नैतिकता समय के साथ बदलती रहती है। प्राचीन काल में जो नैतिक माना जाता था, वह आज के समय में प्रासंगिक नहीं हो सकता।

सामाजिकता: नैतिकता व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने का कार्य करती है।

व्यक्तिगत जीवन में नैतिकता का महत्व

व्यक्तिगत जीवन में नैतिकता का पालन व्यक्ति के आचरण, आदतों, निर्णयों और समाज में उसकी छवि को प्रभावित करता है। यह आत्म-सम्मान और संतोष की भावना को जन्म देती है।

1. चरित्र निर्माण में योगदान

नैतिकता व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करती है। सत्य, ईमानदारी, करुणा और परोपकार जैसे नैतिक गुणों को अपनाने से व्यक्ति का समाज में सम्मान बढ़ता है और वह एक आदर्श नागरिक बनता है।

2. आत्म-अनुशासन और आत्म-संयम

नैतिकता व्यक्ति को आत्म-अनुशासन सिखाती है। यह उसे अपनी इच्छाओं और भावनाओं को नियंत्रित करने में सहायता करती है, जिससे वह सही और गलत के बीच अंतर कर पाता है।

3. पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाना

नैतिक व्यक्ति अपने परिवार और समाज में विश्वास और सहयोग की भावना पैदा करता है। ईमानदारी और करुणा के सिद्धांतों का पालन करने से पारिवारिक जीवन सुखमय होता है और समाज में शांति बनी रहती है।

4. मानसिक शांति और संतोष

नैतिक आचरण का पालन करने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से शांत रहता है। उसे अपने निर्णयों पर पछतावा नहीं होता और वह संतोषजनक जीवन व्यतीत करता है।

5. नैतिकता और पेशेवर जीवन

व्यक्तिगत नैतिकता केवल घर और समाज तक ही सीमित नहीं होती, बल्कि यह व्यक्ति के कार्यस्थल पर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक नैतिक कर्मचारी या अधिकारी ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है और भ्रष्टाचार से दूर रहता है।

सार्वजनिक जीवन में नैतिकता का महत्व

सार्वजनिक जीवन में नैतिकता का पालन किसी भी लोकतांत्रिक समाज और कुशल शासन के लिए अनिवार्य होता है। यह सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं, न्यायपालिका, मीडिया और अन्य सार्वजनिक संस्थानों पर लागू होती है।

1. सुशासन (Good Governance) को बढ़ावा देना

नैतिकता प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करती है। यह सुशासन के मूल सिद्धांतों में से एक है।

2. भ्रष्टाचार और अनैतिक प्रथाओं पर नियंत्रण

यदि सार्वजनिक जीवन में नैतिकता का पालन किया जाए, तो भ्रष्टाचार, पक्षपात और अनुचित लाभ लेने जैसी समस्याओं को रोका जा सकता है। एक नैतिक अधिकारी न केवल स्वयं ईमानदार रहता है, बल्कि दूसरों को भी नैतिक रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।

3. जनता का विश्वास बनाए रखना

जब सरकार, न्यायपालिका और प्रशासन में नैतिकता बनी रहती है, तो नागरिकों का विश्वास इन संस्थाओं में बढ़ता है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों को सशक्त करता है और सामाजिक स्थिरता बनाए रखता है।

4. नीति निर्माण में निष्पक्षता और पारदर्शिता

नैतिकता नीति निर्माण प्रक्रिया को निष्पक्ष और न्यायसंगत बनाती है। यह सुनिश्चित करती है कि नीतियाँ किसी विशेष वर्ग के लाभ के लिए नहीं, बल्कि समस्त जनता के कल्याण के लिए बनाई जाएँ।

5. सामाजिक समरसता और न्याय

सार्वजनिक जीवन में नैतिकता सामाजिक न्याय और समरसता को बढ़ावा देती है। यह समाज के कमजोर और वंचित वर्गों के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना विकसित करने में सहायक होती है।

6. मीडिया और पत्रकारिता में नैतिकता

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। यदि मीडिया नैतिकता का पालन करे, तो वह समाज में सत्य और निष्पक्षता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

नैतिकता का उल्लंघन और उसके दुष्प्रभाव

जब व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में नैतिकता का पालन नहीं किया जाता, तो इसके गंभीर दुष्परिणाम सामने आते हैं।

1. भ्रष्टाचार और अनैतिक आचरण

यदि प्रशासनिक और राजनीतिक संस्थानों में नैतिकता का पालन नहीं किया जाता, तो भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और भाई-भतीजावाद जैसी समस्याएँ बढ़ जाती हैं।

2. सामाजिक असमानता और अन्याय

नैतिक मूल्यों की कमी के कारण समाज में अमीर-गरीब के बीच असमानता बढ़ती है, जिससे सामाजिक अशांति उत्पन्न होती है।

3. कानून और व्यवस्था का विघटन

यदि नागरिक और अधिकारी नैतिकता का पालन नहीं करते, तो कानून-व्यवस्था कमजोर हो जाती है और समाज में अराजकता फैल जाती है।

निष्कर्ष

नैतिकता किसी भी व्यक्ति और समाज के लिए मूलभूत आधार होती है। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन में सफलता और संतोष का कारण बनती है, बल्कि सार्वजनिक जीवन में सुशासन, पारदर्शिता और सामाजिक समरसता को भी सुनिश्चित करती है।

यदि हम एक सशक्त, समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना करना चाहते हैं, तो नैतिकता को अपने जीवन और प्रशासन का अभिन्न अंग बनाना होगा। इसके लिए शिक्षा, जागरूकता और नैतिक नेतृत्व को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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