क्या पाकिस्तान एक बार पुनः विभाजन का शिकार होगा?
भूमिका
पाकिस्तान 1947 में भारत से अलग होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र बना, लेकिन यह विभाजन केवल एक शुरुआत थी। 1971 में एक और विभाजन हुआ, जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) अलग होकर एक स्वतंत्र देश बन गया। आज, पाकिस्तान कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या देश एक और विभाजन की ओर बढ़ रहा है? बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में बढ़ते अलगाववादी आंदोलन, आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ती सैन्य भूमिका ने इस संभावना को और भी प्रासंगिक बना दिया है।
इस लेख में, हम पाकिस्तान के विभाजन की संभावनाओं को समझने के लिए इसके आंतरिक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं का विश्लेषण करेंगे।
पाकिस्तान में विभाजन के ऐतिहासिक संदर्भ
1971 का बांग्लादेश विभाजन
पाकिस्तान का पहला बड़ा विभाजन 1971 में हुआ जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) ने स्वतंत्रता प्राप्त की। इसकी मुख्य वजह थी पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के साथ होने वाला भेदभाव। भाषा, आर्थिक संसाधनों और राजनीतिक अधिकारों को लेकर पूर्वी पाकिस्तान की जनता में असंतोष बढ़ता गया। जब 1970 के आम चुनावों में शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी को बहुमत मिला और फिर भी उन्हें सत्ता नहीं दी गई, तो यह संघर्ष और बढ़ गया। इसके बाद, भारतीय सैन्य समर्थन से बांग्लादेश ने स्वतंत्रता प्राप्त की।
इस विभाजन के बाद भी, पाकिस्तान के भीतर कई क्षेत्रीय असंतोष बने रहे, जो आज भी अलगाववादी आंदोलनों के रूप में देखे जा सकते हैं।
आंतरिक अस्थिरता और अलगाववादी आंदोलन
बलूचिस्तान – पाकिस्तान का अशांत प्रांत
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन यह लंबे समय से असंतोष और अलगाववाद का केंद्र बना हुआ है। यह क्षेत्र खनिज संपदा से भरपूर है, फिर भी यहां के लोगों को गरीबी और पिछड़ेपन का सामना करना पड़ता है। बलूच अलगाववादी समूह, जैसे कि बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA), पाकिस्तान सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
बलूच अलगाववाद के पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं:
1. आर्थिक शोषण – बलूचिस्तान की प्राकृतिक संपदा का दोहन किया जाता है, लेकिन इसका लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिलता।
2. राजनीतिक दमन – पाकिस्तान सरकार और सेना द्वारा बलूच नेताओं और कार्यकर्ताओं को दबाने की कोशिशें।
3. मानवाधिकार हनन – जबरन गुमशुदगी, अपहरण और सैन्य कार्रवाइयों के कारण स्थानीय लोगों में असंतोष बढ़ा है।
बलूच अलगाववादी आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी मिल सकता है, विशेष रूप से भारत और पश्चिमी देशों की ओर से। यह स्थिति पाकिस्तान के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर सकती है।
खैबर पख्तूनख्वा और पश्तून आंदोलन
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और उससे सटे अफगान सीमा क्षेत्रों में पश्तून राष्ट्रवाद धीरे-धीरे बढ़ रहा है। "पश्तून तहाफुज मूवमेंट" (PTM) जैसे संगठन पाकिस्तानी सेना पर मानवाधिकार हनन के आरोप लगाते हैं और पश्तूनों के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग करते हैं।
यदि अफगानिस्तान में तालिबान शासन स्थिर होता है और पश्तून राष्ट्रवाद को बढ़ावा देता है, तो खैबर पख्तूनख्वा में भी एक नया स्वतंत्र राष्ट्र "पश्तूनिस्तान" बनने की संभावना प्रबल हो सकती है।
सिंध और मुहाजिर आंदोलन
कराची और सिंध प्रांत में भी असंतोष बढ़ रहा है। मुहाजिर राष्ट्रीय आंदोलन (MQM) जैसे संगठन सिंध और कराची में एक अलग पहचान की मांग करते रहे हैं। पाकिस्तान सरकार पर कराची में राजनीतिक भेदभाव और दमन का आरोप लगाया जाता रहा है।
गिलगित-बाल्टिस्तान – एक और संघर्ष क्षेत्र
गिलगित-बाल्टिस्तान, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का हिस्सा है, वहां भी असंतोष बढ़ रहा है। यह क्षेत्र संवैधानिक अधिकारों की मांग कर रहा है और स्थानीय लोग पाकिस्तान सरकार की नीतियों से नाखुश हैं। चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर (CPEC) परियोजना के कारण यहां के लोगों में असंतोष बढ़ा है।
आर्थिक संकट – विभाजन को बढ़ावा देने वाला कारक
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है। कुछ प्रमुख समस्याएं इस प्रकार हैं:
1. बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी – पाकिस्तान में महंगाई दर बढ़ रही है और रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं।
2. विदेशी ऋणों का बोझ – पाकिस्तान IMF और अन्य देशों से कर्ज लेकर अपनी अर्थव्यवस्था चला रहा है, लेकिन इसे चुकाने की क्षमता कम होती जा रही है।
3. कमजोर औद्योगिक विकास – पाकिस्तान में उद्योगों का विकास धीमा हो रहा है, जिससे आर्थिक संकट और गहरा गया है।
जब कोई देश आर्थिक रूप से कमजोर होता है, तो वहां के अलगाववादी आंदोलन और भी अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं।
राजनीतिक अस्थिरता और सैन्य हस्तक्षेप
पाकिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप और राजनीतिक अस्थिरता लंबे समय से बनी हुई है। हाल ही में, इमरान खान की सरकार का पतन और उनकी गिरफ्तारी से जनता में गहरा असंतोष फैला। पाकिस्तान की राजनीति में बार-बार तख्तापलट होते रहे हैं, जिससे लोकतंत्र कमजोर हुआ है।
यदि जनता का भरोसा सरकार और सेना से उठता रहा, तो विभाजन की संभावनाएँ और भी बढ़ सकती हैं।
विदेशी प्रभाव और भू-राजनीतिक स्थिति
पाकिस्तान की स्थिरता को अंतरराष्ट्रीय ताकतें भी प्रभावित कर सकती हैं।
1. भारत –
2. अफगानिस्तान –
अफगानिस्तान की स्थिति खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान के अलगाववादी आंदोलनों को प्रभावित कर सकती है।
3. चीन –
संभावित परिदृश्य
1. पाकिस्तान का संघीय पुनर्गठन
अगर पाकिस्तान अपनी संघीय संरचना को और अधिक विकेंद्रीकृत कर देता है, तो प्रांतों को अधिक अधिकार मिल सकते हैं और विभाजन की संभावना कम हो सकती है।
2. बलूचिस्तान की स्वतंत्रता
अगर बलूच आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलता है, तो यह पाकिस्तान से अलग हो सकता है।
3. पश्तूनिस्तान का निर्माण
अगर खैबर पख्तूनख्वा में पश्तून राष्ट्रवाद बढ़ता है, तो यह क्षेत्र पाकिस्तान से अलग हो सकता है।
4. सिंध और कराची में अलगाववाद
सिंध और कराची में भी अलगाववादी प्रवृत्तियां बढ़ सकती हैं, जिससे पाकिस्तान को और अधिक संकटों का सामना करना पड़ेगा।
निष्कर्ष
पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति चिंताजनक है। आंतरिक अलगाववादी आंदोलन, आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और विदेशी हस्तक्षेप के कारण इसका भविष्य अनिश्चित नजर आता है। हालांकि, यह कहना जल्दबाजी होगी कि पाकिस्तान निश्चित रूप से विभाजन का शिकार होगा।
यदि पाकिस्तान सरकार इन समस्याओं का समाधान निकालने में सफल नहीं होती, तो आने वाले वर्षों में देश का वर्तमान संघीय ढांचा कमजोर हो सकता है। यह समय पाकिस्तान के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसकी अस्थिरता न केवल उसके लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए गंभीर प्रभाव डाल सकती है।
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