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Daily Current Affairs: 27 April 2025

दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...

How Some YouTube Channels Are Fueling Caste and Communal Hatred in India

ब्लॉग लेख

शीर्षक: डिजिटल प्लेटफॉर्म पर वैमनस्य का कारोबार – कैसे एक क्लिक से बिगड़ रहा है सामाजिक ताना-बाना?

आज जब देश डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रहा है, इंटरनेट और सोशल मीडिया का उपयोग तेजी से बढ़ा है। ज्ञान, सूचना और संवाद के ये माध्यम अब हमारी सोच और दृष्टिकोण को भी आकार देने लगे हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन माध्यमों का प्रयोग अब कई लोग सामाजिक समरसता को बढ़ाने के बजाय जातीय, धार्मिक और वैचारिक टकराव को भड़काने के लिए कर रहे हैं।

एक खतरनाक ट्रेंड की शुरुआत

आज यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे चैनलों की भरमार हो गई है जो एक खास समुदाय, जाति या विचारधारा को लक्षित करके कंटेंट बनाते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य है – भीड़ का समर्थन प्राप्त करना। इसके लिए वे लोगों की पीड़ा, गुस्सा और भ्रम को ईंधन की तरह इस्तेमाल करते हैं।

मान लीजिए अगर किसी चैनल को मोदी विरोधियों का समर्थन चाहिए, तो वह प्रधानमंत्री मोदी के हर फैसले की आलोचना करेगा, भले ही उसमें जनहित छिपा हो। अगर कोई चैनल सनातन धर्म के अनुयायियों को जोड़ना चाहता है, तो वह इस्लाम या मुसलमानों को टारगेट करने वाले वीडियो तैयार करेगा। इसी प्रकार यदि किसी का लक्ष्य दलित या पिछड़े वर्ग के लोगों को जोड़ना है, तो वह ब्राह्मण समाज को खलनायक की तरह प्रस्तुत करेगा और यह दर्शाएगा कि उनकी सारी समस्याओं की जड़ ब्राह्मण व्यवस्था है।

सोचिए, यह कितना खतरनाक है!

ये चैनल्स आपके "सामाजिक दर्द" को भुनाकर खुद की "डिजिटल कमाई" कर रहे हैं। आपको लगता है कि ये आपकी आवाज़ हैं, जबकि ये लोग आपकी भावनाओं के दोहन से खुद के व्यूज़, लाइक्स, सब्सक्राइबर्स और विज्ञापन आय बढ़ा रहे हैं।

आपका गुस्सा, उनकी पूंजी है।
आपकी भड़ास, उनका ब्रांड है।
और आपका भ्रम, उनकी रणनीति है।

समस्या केवल डिजिटल नहीं, सामाजिक है

यह ट्रेंड सिर्फ ऑनलाइन नहीं रह जाता, इसका असर जमीनी स्तर पर देखने को मिलता है। धीरे-धीरे समाज में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास पनपने लगता है। जातीय द्वेष, धार्मिक कट्टरता और वैचारिक उग्रता घर-घर में घुस जाती है। खासकर युवाओं को टारगेट किया जाता है, जिनकी सोच अभी विकसित हो रही होती है। ये चैनल उन्हें सोचने की स्वतंत्रता नहीं, बल्कि तैयार किए गए विचार थमा देते हैं।

सरकार की भूमिका और जिम्मेदारी

इस बढ़ती प्रवृत्ति पर नियंत्रण आवश्यक है। सरकार को चाहिए कि वह ऐसे कंटेंट की पहचान करे जो नफरत फैला रहे हैं या समाज में विभाजन की भावना को प्रोत्साहित कर रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) और डिजिटल मीडिया गाइडलाइंस के तहत ऐसे चैनलों पर निगरानी रखी जाए और आवश्यकतानुसार दंडात्मक कार्रवाई की जाए।

लेकिन केवल कानून से समाधान नहीं होगा।

समाज को भी बदलनी होगी सोच

हम सभी को अपने विवेक का प्रयोग करना होगा। हर बात को आंख मूंदकर मान लेना, हर वीडियो को सच्चाई समझ लेना और हर उकसावे में आ जाना – यह हमारी चेतना को कुंद करता है। हमें यह समझना होगा कि ‘विचार’ तब तक शक्तिशाली है जब तक उसमें विवेक और सहिष्णुता हो।

हमें ऐसे कंटेंट को पहचानना होगा जो उद्देश्यपूर्ण आलोचना के बजाय दुर्भावनापूर्ण हमला कर रहे हों। हमें विचार करना होगा कि कहीं हम अपने ही समाज को तोड़ने वालों का उपकरण तो नहीं बन रहे?

निष्कर्ष: एक जागरूक क्लिक से ही रुक सकती है वैमनस्य की क्लिकबाज़ी

वक्त आ गया है कि हम डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अपनी भूमिका को समझें। हमें यह तय करना होगा कि हम किस प्रकार के कंटेंट को देखना, शेयर करना और आगे बढ़ाना चाहते हैं। यह केवल हमारी डिजिटल आदत नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी है।

याद रखिए –
हर ‘सब्सक्राइब’ के पीछे एक दिशा है,
हर ‘लाइक’ के पीछे एक संदेश है,
और हर ‘शेयर’ के पीछे एक असर है।

समाज को जोड़ने वाली बातों को बढ़ावा दें, तोड़ने वाली सोच से बचें। जागरूक नागरिक वही होता है जो अपनी भावनाओं का इस्तेमाल करता है, लेकिन इस्तेमाल नहीं होने देता।


यह विषय UPSC (विशेषकर GS पेपर 2 और निबंध पेपर) से गहराई से जुड़ा हुआ है। चलिए स्पष्ट रूप से समझते हैं:


UPSC GS Paper 2 (Governance, Polity, Social Justice & International Relations)

इस लेख का विषय निम्नलिखित टॉपिक्स से संबंधित है:

  • Governance: डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट का नियमन और सरकार की भूमिका
  • Role of NGOs, SHGs, various groups and associations: डिजिटल समाज में उभरते विचारात्मक समूह
  • Mechanisms, laws, institutions and Bodies constituted for the protection of vulnerable sections: जातीय और धार्मिक रूप से संवेदनशील समुदायों की सुरक्षा
  • Communalism, regionalism & secularism: सांप्रदायिकता और जातीय विद्वेष की प्रवृत्ति

UPSC Essay Paper

यह विषय सामाजिक समरसता, डिजिटल युग में नैतिकता, और गठित विचारों की स्वतंत्रता बनाम भड़काऊ विचारधारा जैसे निबंधों के लिए बेहद उपयोगी है।

उदाहरण के लिए:

  • “The role of media in shaping social harmony in the digital age.”
  • “Freedom of speech vs. Responsible content creation – a digital dilemma.”
  • “Caste and communal identities in the modern Indian narrative.”

समसामयिकता (Current Affairs) में उपयोगिता

  • डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर रेगुलेशन (जैसे IT Rules 2021)
  • फेक न्यूज़, हेट स्पीच, और सरकार की भूमिका
  • सांप्रदायिक तनाव से जुड़े वर्तमान उदाहरण (जो उत्तर में case studies की तरह उपयोगी होते हैं)


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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