पहलगाम आतंकी हमला, पाकिस्तान की रक्षा नीति और आर्थिक संकट — एक समग्र विश्लेषण
भूमिका
सीमापार प्रायोजित आतंकवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक चुनौती बना हुआ है। 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला, जिसमें 26 पर्यटकों की जान गई, न केवल भारत की सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक गंभीर झटका है, बल्कि दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में भी उथल-पुथल का कारण बना है। यह घटना भारत-पाकिस्तान संबंधों को और तनावपूर्ण बनाती है, साथ ही पाकिस्तान के सामने एक जटिल द्विविधा प्रस्तुत करती है—बढ़ता रक्षा दबाव और गहराता आर्थिक संकट। इस स्थिति का सुरक्षा, रणनीति, कूटनीति और नैतिकता के दृष्टिकोण से विश्लेषण आवश्यक है।
पहलगाम आतंकी हमला: एक परिचय
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की बैसरन घाटी, जिसे 'मिनी स्विट्जरलैंड' के नाम से जाना जाता है, में आतंकियों ने पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलीबारी की। इस हमले में 26 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे, और कई अन्य घायल हुए। लश्कर-ए-तैयबा से संबद्ध 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। यह घटना दर्शाती है कि जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापना के प्रयासों के बावजूद, सीमापार आतंकवाद एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति: आर्थिक संकट
- विदेशी मुद्रा भंडार: 2025 की शुरुआत में भंडार केवल कुछ सप्ताह के आयात के लिए पर्याप्त थे।
- IMF पर निर्भरता: IMF की सख्त शर्तों के तहत कर वृद्धि, सब्सिडी कटौती और महंगाई नियंत्रण जैसे कठिन उपाय अपनाने पड़ रहे हैं।
- जन असंतोष: बेरोजगारी, महंगाई और राजनीतिक अस्थिरता ने जनता में असंतोष बढ़ाया है।
- राजकोषीय घाटा: बजट घाटा GDP के लगभग 7% तक पहुँच गया है।
रक्षा व्यय का बोझ: आर्थिक दुष्चक्र
पाकिस्तान ने हाल ही में अपने रक्षा बजट में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिसका उद्देश्य भारत के प्रति सैन्य तैयारियों को बनाए रखना और आंतरिक विद्रोहों से निपटना है। यह निर्णय आर्थिक संकट के बीच कई चुनौतियाँ उत्पन्न करता है:
- स्वास्थ्य, शिक्षा और जनकल्याण पर व्यय में कटौती।
- कर्ज का बड़ा हिस्सा ब्याज भुगतान में खर्च हो रहा है।
- अंतरराष्ट्रीय निवेशकों में विश्वास की कमी।
- लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोरी और अस्थिरता।
भारत के लिए रणनीतिक और कूटनीतिक अवसर
कूटनीतिक रणनीति
- FATF: पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बनाए रखने के लिए ठोस सबूत प्रस्तुत करना।
- संयुक्त राष्ट्र: UNSC व अन्य मंचों पर मामला उठाना।
- द्विपक्षीय वार्ता: “आतंक और वार्ता साथ नहीं चल सकते” की नीति पर अडिग रहना।
सामरिक रणनीति
- सर्जिकल स्ट्राइक की संभावना और तैयारियाँ।
- खुफिया नेटवर्क का आधुनिकीकरण।
- सुरक्षा बलों के संसाधनों और प्रशिक्षण में वृद्धि।
मानवाधिकार और नैतिक दृष्टिकोण
आतंकवाद के खिलाफ भारत का कड़ा रुख अक्सर मानवाधिकार हनन के आरोपों को जन्म देता है। भारत को अंतरराष्ट्रीय मानकों और लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन सुनिश्चित करते हुए आतंकवाद के खात्मा के लिए ऑपरेशन क्लीनिक आल क्लियर चलाने होंगे। दूसरी ओर, पाकिस्तान की जनता को भी रक्षा व्यय में कटौती के लिए “हथियार बनाम रोटी” का नैतिक दबाव पाकिस्तान सरकार पर बनानी होगी।
दक्षिण एशियाई स्थिरता पर प्रभाव
- अफगानिस्तान की अस्थिरता: पाकिस्तान की सैन्य प्राथमिकताएँ वहाँ भी असंतुलन ला सकती हैं।
- चीन की भूमिका: CPEC जैसी परियोजनाओं की सुरक्षा पर असर।
- SAARC का भविष्य: क्षेत्रीय सहयोग पर नकारात्मक प्रभाव।
समाधान की दिशा
- वैश्विक सहयोग: अमेरिका, यूरोप और रूस के साथ मिलकर आतंकवाद-विरोधी रणनीति।
- राजनीतिक संवाद: पाकिस्तान की कार्रवाई पर निर्भर द्विपक्षीय संवाद।
- Track II Diplomacy: बुद्धिजीवियों और मीडिया के माध्यम से संवाद।
निष्कर्ष
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुआ आतंकी हमला, जिसमें 26 पर्यटकों की जान गई, एक सुरक्षा संकट के साथ-साथ कूटनीतिक, आर्थिक और मानवीय चुनौतियों को भी उजागर करता है। पाकिस्तान की रक्षा नीतियाँ उसकी अर्थव्यवस्था को संकट में डाल रही हैं, जबकि भारत के लिए यह राष्ट्रीय हितों की रक्षा का अवसर है। संयम, नैतिकता और रणनीतिक संतुलन के साथ भारत न केवल आतंकवाद का मुकाबला कर सकता है, बल्कि दक्षिण एशिया में स्थायी शांति और स्थिरता की दिशा में भी अग्रसर हो सकता है।
Comments
Post a Comment