रूस-यूक्रेन युद्ध और 'न्यायसंगत समाधान' की तलाश: वैश्विक शांति के लिए एक नई पहल
"शांति केवल युद्धविराम नहीं, बल्कि न्याय आधारित संवाद का परिणाम होती है।"
21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था एक ऐसे दौर से गुजर रही है जहाँ शांति और स्थिरता की अवधारणाएँ बार-बार चुनौती के घेरे में आती हैं। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध इसका ज्वलंत उदाहरण है, जिसने केवल दो देशों के बीच शक्ति संघर्ष का नहीं, बल्कि समूची विश्व-राजनीतिक संरचना के असंतुलन का संकेत दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा "न्यायसंगत समाधान" और "बातचीत की तत्परता" की घोषणा एक नई कूटनीतिक खिड़की खोलती प्रतीत होती है।
युद्ध की पृष्ठभूमि: टकराव की जड़ें
रूस-यूक्रेन संघर्ष की जड़ें केवल 2022 के सैन्य आक्रमण में नहीं हैं, बल्कि यह एक लंबे ऐतिहासिक, भौगोलिक और सामरिक विवाद का परिणाम है। यूक्रेन का पश्चिमी देशों, विशेष रूप से नाटो और यूरोपीय संघ की ओर बढ़ता झुकाव, रूस की सुरक्षा चिंताओं को सीधा चुनौती देता रहा है। वहीं यूक्रेन अपनी संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा को सर्वोच्च मानता है।
फरवरी 2022 में रूस द्वारा शुरू किए गए सैन्य अभियान ने यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक उथल-पुथल को जन्म दिया। यह युद्ध अब अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है, लेकिन किसी निर्णायक अंत की ओर बढ़ता नहीं दिखता।
पुतिन की "न्यायसंगत समाधान" की पेशकश: कूटनीति या रणनीति?
रूस के राष्ट्रपति द्वारा हाल में दिया गया यह बयान कि "हम एक न्यायपूर्ण समाधान के लिए तैयार हैं और कभी बातचीत से नहीं भागे," कई सवाल खड़े करता है:
- क्या यह वास्तव में शांति स्थापना की इच्छा है, या फिर युद्धक्षेत्र में लंबी खिंचाई और प्रतिबंधों के प्रभाव से थककर उठाया गया रणनीतिक कदम?
- "न्यायसंगत समाधान" की परिभाषा क्या है — क्या इसमें रूस द्वारा कब्जाए गए यूक्रेनी क्षेत्रों की स्वीकृति शामिल है?
- क्या यह पहल सभी पक्षों के लिए स्वीकार्य हो सकती है?
यह स्पष्ट है कि रूस की यह पहल केवल शांति की पुकार नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी है, जो पश्चिमी देशों को यह संकेत देती है कि युद्ध का समाधान केवल सैन्य रास्तों से संभव नहीं है।
यूक्रेन और पश्चिमी देशों का रुख: अड़ियल या आत्म-रक्षा?
यूक्रेन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह वार्ता उसी स्थिति में स्वीकार करेगा जब रूस कब्जाए गए क्षेत्रों को खाली करेगा और उसकी संप्रभुता की पूर्ण गारंटी दी जाएगी। वहीं अमेरिका और यूरोपीय संघ रूस के सैन्य आक्रमण को "आक्रामकता का प्रतीक" मानते हैं और किसी भी तरह के समझौते को रूस के आगे झुकाव की तरह नहीं देखना चाहते।
इससे यह स्पष्ट होता है कि वार्ता की संभावनाएँ तभी ठोस रूप ले सकती हैं जब सभी पक्ष अपने-अपने अधिकतमवादी रुख में लचीलापन लाएं।
भारत की भूमिका: संतुलन और संभावनाएँ
भारत ने शुरू से ही युद्ध के विरुद्ध आवाज उठाई है और लगातार संवाद तथा शांति की वकालत की है। भारत की नीति “मानवता के पक्ष में, युद्ध के विरुद्ध” रही है। रूस के साथ पारंपरिक संबंधों और पश्चिम के साथ सामरिक साझेदारी के बीच भारत ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है।
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, G20 और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों का प्रयोग कर संवाद की आवश्यकता पर बल देता रहा है। भारत की यह भूमिका आने वाले समय में वैश्विक मध्यस्थ के रूप में स्थापित हो सकती है।
वैश्विक प्रभाव: युद्ध का दायरा सीमाओं से बाहर
यह युद्ध केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहा:
- ऊर्जा संकट: यूरोप में गैस आपूर्ति प्रभावित होने से ऊर्जा की कीमतों में भारी उछाल आया।
- खाद्यान्न संकट: यूक्रेन और रूस वैश्विक गेहूँ और खाद्य तेल के प्रमुख निर्यातक हैं; आपूर्ति बाधित होने से अफ्रीका और एशिया में खाद्य संकट बढ़ा।
- आर्थिक मंदी और मुद्रास्फीति: कई देशों में आर्थिक विकास दर गिरी, मुद्रास्फीति बढ़ी।
- संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर प्रश्नचिह्न: यह युद्ध संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े करता है, विशेषकर जब सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य ही एक पक्ष हो।
शांति के लिए क्या आवश्यक है?
- सभी पक्षों की सहभागिता: एकतरफा वार्ता या समझौता स्थायी नहीं हो सकता। सभी पक्षों को बातचीत की मेज़ पर समान रूप से शामिल करना होगा।
- संप्रभुता का सम्मान: किसी भी समाधान में यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का ध्यान रखना अनिवार्य है।
- सुरक्षा चिंताओं का समाधान: रूस की पारंपरिक सुरक्षा चिंताओं को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
- मध्यस्थता की भूमिका: भारत जैसे देशों द्वारा मध्यस्थता से बातचीत को प्रामाणिकता और संतुलन मिल सकता है।
न्याय और यथार्थ के मध्य संतुलन: निबंध का भावात्मक पक्ष
कई बार युद्ध का समाधान न तो विजेता तय करता है और न ही हारने वाला, बल्कि वे लोग तय करते हैं जो युद्ध में मारे जाते हैं — निर्दोष नागरिक, बच्चे, महिलाएँ, किसान, कामगार। “न्यायसंगत समाधान” केवल सीमाओं या सत्ता की बात नहीं है, वह उन जिंदगियों की रक्षा की बात है जो अब भी शांति की आस में हैं।
निष्कर्ष:
रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति केवल हथियारों के रुकने से नहीं होगी, बल्कि एक ऐसी वार्ता से होगी जिसमें न्याय, समता और व्यावहारिकता का समन्वय हो। राष्ट्रपति पुतिन की बातचीत की पहल एक अवसर प्रदान करती है — एक ऐसा अवसर, जिसे यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने समय रहते नहीं अपनाया, तो यह युद्ध अगली पीढ़ियों के भविष्य को भी अपनी आग में झुलसा सकता है।
"युद्ध की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अंत में सभी पक्ष शांति चाहते हैं — फिर भी वह रास्ता तब खोजा जाता है जब सबसे अधिक नुकसान हो चुका होता है।"
अतः आज ही वह क्षण है जब ‘न्यायसंगत समाधान’ की अवधारणा को न केवल शब्दों में, बल्कि कर्मों में परिवर्तित किया जाए।
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