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Daily Current Affairs: 27 April 2025

दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...

Current Affairs in Hindi : 11 April 2025

समसामयिकी लेख संकलन : 11 अप्रैल 2025

1-धारा 44(3) का विरोध: क्या डिजिटल डेटा सुरक्षा कानून RTI को कमजोर करता है?

प्रस्तावना:

भारत सरकार द्वारा पारित Digital Personal Data Protection Act, 2023 में शामिल धारा 44(3) को लेकर हाल ही में विपक्षी INDIA गठबंधन ने गंभीर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह प्रावधान नागरिकों के सूचना के अधिकार (RTI) को कमजोर कर देता है और पारदर्शिता के सिद्धांत पर चोट करता है। इस लेख में हम इस विवाद की पृष्ठभूमि, दोनों पक्षों के तर्क और इसके संभावित प्रभावों की चर्चा करेंगे।


धारा 44(3) क्या है?

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम की धारा 44(3) कहती है कि यदि कोई जानकारी "व्यक्तिगत डेटा" की श्रेणी में आती है, तो उसे सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत साझा नहीं किया जा सकता, भले ही वह जानकारी सार्वजनिक हित से संबंधित क्यों न हो।


INDIA गठबंधन की आपत्ति:

  1. RTI अधिनियम की आत्मा पर प्रहार – RTI कानून की धारा 8(1)(j) पहले से ही यह तय करती है कि यदि कोई जानकारी सार्वजनिक हित में है, तो उसे व्यक्तिगत होने के बावजूद साझा किया जा सकता है। लेकिन डिजिटल डेटा सुरक्षा अधिनियम की धारा 44(3) इसे निष्क्रिय कर देती है।
  2. सार्वजनिक जवाबदेही में बाधा – सरकार के कार्यों, फैसलों, नीतियों और अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के लिए RTI बेहद जरूरी है। नई धारा सरकारी गोपनीयता को बढ़ावा दे सकती है।
  3. भ्रष्टाचार पर पर्दा – RTI के जरिए बहुत से घोटाले उजागर हुए हैं। यदि व्यक्तिगत डेटा के नाम पर जानकारी छिपाई जाती है, तो भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है।

सरकार की ओर से संभावित पक्ष:

  1. निजता का संरक्षण आवश्यक – सुप्रीम कोर्ट ने Puttaswamy केस (2017) में निजता को मौलिक अधिकार माना है। डिजिटल युग में नागरिकों की निजता की रक्षा के लिए कड़ा कानून जरूरी है।
  2. संतुलन बनाए रखने की कोशिश – सरकार का तर्क हो सकता है कि RTI और निजता के बीच संतुलन बैठाना कठिन है, और यह अधिनियम उसी प्रयास का हिस्सा है।
  3. दुरुपयोग की रोकथाम – कई बार RTI का इस्तेमाल व्यक्तिगत जानकारी जुटाने के लिए किया जाता है, जिससे निजता का हनन होता है।

निष्कर्ष:

इस विवाद में दो मौलिक अधिकार आमने-सामने हैं – सूचना का अधिकार और निजता का अधिकार। दोनों ही लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं। लेकिन जब "व्यक्तिगत डेटा" की परिभाषा बहुत व्यापक और अस्पष्ट हो, तो सत्ता द्वारा इसका दुरुपयोग संभव है। INDIA गठबंधन की यह मांग कि धारा 44(3) को निरस्त किया जाए, एक लोकतांत्रिक बहस की ओर संकेत करती है।

आवश्यकता इस बात की है कि दोनों अधिकारों के बीच संतुलन बना रहे और पारदर्शिता, जवाबदेही तथा नागरिक स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए कानूनों की व्याख्या संवेदनशील और न्यायपूर्ण ढंग से की जाए।


2-यौन उत्पीड़न और न्याय व्यवस्था में पीड़िता को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति पर विचार

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा एक बलात्कार के आरोपी को जमानत दिए जाने के निर्णय ने न्यायिक व्यवस्था में एक बार फिर से उस संवेदनशील प्रश्न को जन्म दे दिया है, जो यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों में पीड़िता की भूमिका और उसके आचरण पर न्यायालयों द्वारा की जाने वाली टिप्पणियों से जुड़ा है। विशेष रूप से तब, जब पीड़िता एक शिक्षित महिला है और समाज के अपेक्षाकृत सशक्त वर्ग से आती है।

मामला क्या है?

मास्टर डिग्री की छात्रा ने प्राथमिकी (FIR) में यह उल्लेख किया कि सितंबर 2024 में वह अपने दोस्तों के साथ एक बार गई थी, जहाँ उन्होंने शराब पी। नशे की हालत में होने के कारण उसे सहारे की आवश्यकता हुई और उसी अवस्था में वह आरोपी के घर आराम करने के लिए चली गई। इसके पश्चात जो घटनाएं हुईं, उन्हें लेकर पीड़िता ने बलात्कार का आरोप लगाया।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने जमानत देते हुए यह टिप्पणी की कि पीड़िता ने स्वयं "मुसीबत को आमंत्रित किया" और वह "स्वयं भी इसके लिए जिम्मेदार" थी। यह टिप्पणी भारतीय न्याय व्यवस्था की उस पुरानी प्रवृत्ति की ओर इशारा करती है, जहाँ यौन हिंसा के मामलों में पीड़िता के आचरण, कपड़े, सामाजिक गतिविधियों, या यहां तक कि मित्रों की संगति पर सवाल उठाए जाते हैं।

क्या ऐसे तर्क न्यायोचित हैं?

भारत में कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि सहमति एक प्रमुख तत्व है, और नशे की स्थिति में दी गई सहमति वैध नहीं मानी जाती। फिर भी, यदि न्यायालय इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि पीड़िता कहाँ गई, क्या पहना, या उसने शराब पी थी, तो यह यौन हिंसा की पीड़िता को और अधिक मानसिक कष्ट में डालने जैसा है।

सामाजिक संदेश क्या जाता है?

इस प्रकार की टिप्पणियाँ न केवल पीड़िताओं को न्याय पाने से हतोत्साहित करती हैं, बल्कि समाज में यह संदेश भी देती हैं कि यदि कोई महिला स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करती है — चाहे वह बार जाना हो या मित्रों के साथ घूमना — तो वह अपने साथ होने वाली हिंसा की जिम्मेदार स्वयं होगी। यह सोच हमारे संविधान में निहित समानता और गरिमा के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।

निष्कर्ष

यौन हिंसा एक अपराध है — और अपराध के लिए दोष केवल अपराधी का होना चाहिए, न कि पीड़िता का। न्यायालयों को चाहिए कि वे संवेदनशीलता और लैंगिक समानता के मूल्यों को अपने निर्णयों में प्रतिबिंबित करें। पीड़िता को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति न केवल निंदनीय है, बल्कि यह न्याय प्रक्रिया की मूल आत्मा के भी विरुद्ध है।


3-धारावी पुनर्विकास: विकास के नाम पर विस्थापन की दास्तान

मुंबई स्थित धारावी, एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती, अब एक बार फिर चर्चा में है। सरकार और निजी कंपनियों द्वारा इसे एक "आधुनिक नगरी" में बदलने की योजनाएं वर्षों से बनाई जा रही हैं। लेकिन हाल ही में सामने आई एक चौंकाने वाली जानकारी ने इस पुनर्विकास परियोजना की सच्चाई को उजागर किया है।

रिपोर्टों के अनुसार, धारावी के लगभग 50,000 से 1 लाख निवासियों को गोवंडी जैसे क्षेत्र में पुनर्वासित किया जा सकता है—जो एक सक्रिय लैंडफिल (कचरा निस्तारण क्षेत्र) के पास स्थित है। यह इलाका न केवल गंभीर प्रदूषण से ग्रस्त है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत हानिकारक माना जाता है।

यह निर्णय धारावी रिडेवलपमेंट अथॉरिटी और महाराष्ट्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है, जिसमें अडानी ग्रुप की एक निजी कंपनी प्रमुख भूमिका निभा रही है।

इस पूरे घटनाक्रम में मुख्य चिंता यह है कि:

  • निवासियों से पर्याप्त परामर्श नहीं लिया गया।
  • पुनर्वास स्थलों की जानकारी पारदर्शी रूप से साझा नहीं की गई।
  • उनके स्वास्थ्य, आजिविका, और सामाजिक ढांचे पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।

धारावी केवल झुग्गी नहीं, बल्कि लाखों लोगों की जीवंत अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक पहचान का केंद्र है। पुनर्विकास की प्रक्रिया यदि समावेशी और मानवीय दृष्टिकोण से नहीं की जाती, तो यह विकास नहीं, विस्थापन और अन्याय बन जाता है।

निष्कर्षतः, यह घटना हमें याद दिलाती है कि किसी भी शहरी परियोजना में "लोगों को केंद्र में रखना" आवश्यक है—विकास तभी सार्थक है जब वह समावेशी और न्यायपूर्ण हो।



प्रश्न 1 (GS Paper 2):

प्रश्न:
भारत में शहरी पुनर्विकास अक्सर समावेशिता की बजाय आधारभूत संरचना को प्राथमिकता देता है। धारावी पुनर्विकास परियोजना के संदर्भ में इस कथन की समालोचनात्मक विवेचना कीजिए।
(250 शब्द)

उत्तर:
भारत में शहरी पुनर्विकास का उद्देश्य आधुनिक शहरों का निर्माण करना है, परंतु यह प्रक्रिया अक्सर हाशिए पर रह रहे समुदायों की समावेशिता को नजरअंदाज करती है। मुंबई की धारावी पुनर्विकास परियोजना इसका एक प्रमुख उदाहरण है।

धारावी एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी है जहाँ लाखों लोग रहते हैं और हजारों अनौपचारिक उद्यम चलते हैं। सरकार द्वारा शुरू की गई इस परियोजना में आधुनिक आवास और सुविधाओं का वादा किया गया है, परंतु हाल की रिपोर्टों में सामने आया है कि 50,000 से 1 लाख लोगों को गोवंडी जैसे क्षेत्र में पुनर्वासित किया जा सकता है, जो एक सक्रिय लैंडफिल (कचरा निस्तारण स्थल) के पास स्थित है।

प्रमुख चिंताएँ:

  • सामाजिक बहिष्करण: पुनर्वास से सामाजिक नेटवर्क और समुदाय टूटते हैं।
  • आजिविका का संकट: धारावी के छोटे व्यवसाय नई जगह पर जीवित रहना कठिन पाएंगे।
  • स्वास्थ्य जोखिम: गोवंडी जैसी जगहों पर प्रदूषण के कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
  • भागीदारी की कमी: निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय लोगों की भागीदारी नगण्य रही है।

निष्कर्ष:
सफल पुनर्विकास वही है जो लोगों के हित में हो, पारदर्शी हो, और सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना का सम्मान करे। धारावी का मामला हमें याद दिलाता है कि विकास मानव-केंद्रित होना चाहिए, न कि केवल भूमि और मुनाफे पर आधारित।


प्रश्न 2 (GS Paper 1):

प्रश्न:
भारत में शहरी परिवर्तन परियोजनाओं के दौरान झुग्गीवासियों को किन सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? एक हालिया उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
(250 शब्द)

उत्तर:
भारत में शहरी परिवर्तन परियोजनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जिनका उद्देश्य शहरों को आधुनिक बनाना है। परंतु, इन परियोजनाओं के दौरान झुग्गीवासियों को कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

धारावी पुनर्विकास परियोजना, मुंबई का एक प्रमुख उदाहरण है। जहाँ एक ओर बेहतर आवास और सुविधाओं का वादा किया गया है, वहीं रिपोर्टें बताती हैं कि हजारों निवासियों को गोवंडी जैसे क्षेत्र में स्थानांतरित किया जा सकता है, जो एक प्रदूषित लैंडफिल क्षेत्र है।

मुख्य चुनौतियाँ:

  • आजिविका का नुकसान: धारावी की अर्थव्यवस्था झुग्गियों में चलने वाले छोटे उद्यमों पर आधारित है। पुनर्वास के बाद इन उद्यमों का संचालन कठिन हो सकता है।
  • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: गोवंडी जैसे क्षेत्रों में वायु और जल प्रदूषण गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
  • सामाजिक ताना-बाना टूटना: झुग्गी समुदायों में आपसी सहयोग और सामाजिक जुड़ाव बहुत मजबूत होता है। पुनर्वास से यह संरचना टूट सकती है।
  • भागीदारी की कमी: योजना निर्माण में स्थानीय निवासियों की सहमति और सहभागिता अक्सर नहीं ली जाती।

निष्कर्ष:
शहरी विकास केवल भवन निर्माण तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसमें मानव विकास, आजिविका सुरक्षा और सामाजिक न्याय की समावेशिता आवश्यक है। धारावी जैसे उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि समावेशी विकास ही सतत विकास का आधार है।


4-वैश्विक साझेदारी की नई दिशा—चीन से दूरी, पश्चिम की ओर झुकाव

भारत की विदेश व्यापार नीति इन दिनों एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल का हालिया बयान इस नीति में आ रहे बदलाव की स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत करता है। उन्होंने कार्नेगी इंडिया के ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट में यह स्पष्ट किया कि भारत अब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में चीन की बजाय यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी देशों के साथ सहयोग को प्राथमिकता देगा। यह वक्तव्य केवल एक सामान्य व्यापारिक नीति का हिस्सा नहीं है, बल्कि एक व्यापक रणनीतिक सोच का परिणाम है।

चीन के साथ सीमित निवेश: क्यों?

भारत और चीन के संबंध पिछले कुछ वर्षों में तनावपूर्ण रहे हैं, विशेष रूप से सीमा पर हुई झड़पों के बाद। इसके साथ ही तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में भी चीन की कंपनियों को लेकर कई चिंताएँ उभरी हैं, जैसे डाटा सुरक्षा, साइबर निगरानी और अनुचित व्यापारिक व्यवहार। इन परिस्थितियों में चीन से बड़े निवेश को हतोत्साहित करना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया प्रतीत होती है।

पीयूष गोयल ने जो तथ्य रखा कि "जब दरवाज़ा खुला था तब भी चीन से कोई बड़ा निवेश नहीं आया", यह इस बात को रेखांकित करता है कि भारत अब उस दिशा में अपनी ऊर्जा खर्च नहीं करना चाहता जहाँ से लाभ की संभावनाएँ कम और जोखिम अधिक हैं।

पश्चिमी देशों की ओर बढ़ते कदम

भारत अब यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे भागीदारों की ओर रुख कर रहा है, जो तकनीकी नवाचार, पारदर्शिता और स्थिरता के क्षेत्र में मजबूत माने जाते हैं। इन देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) की संभावनाएँ भी तेजी से बढ़ रही हैं, जिनका लाभ भारत के विनिर्माण, सेवा और डिजिटल क्षेत्रों को मिल सकता है। अमेरिका, यूके, फ्रांस, जर्मनी आदि के साथ भारत के संबंध केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी हैं।

आत्मनिर्भर भारत और वैश्विक सहयोग का संतुलन

यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर है, लेकिन इसका अर्थ वैश्विक सहयोग से दूरी नहीं है। भारत अब ऐसे साझेदारों की खोज में है, जो उसकी संप्रभुता, सुरक्षा और आर्थिक विकास के लक्ष्यों के अनुरूप हों। पश्चिमी देशों के साथ तकनीकी, रक्षा और नवाचार के क्षेत्रों में सहयोग इस दिशा में सहायक हो सकता है।

निष्कर्ष: रणनीति में बदलाव, दृष्टिकोण में परिपक्वता

भारत की यह नीति केवल चीन के विरोध में नहीं है, बल्कि एक सकारात्मक दिशा में बढ़ने की आकांक्षा है। यह उस परिपक्वता का संकेत है जिसमें भारत अब "किससे बचें" से आगे बढ़कर "किसके साथ आगे बढ़ें" की सोच विकसित कर रहा है। यह बदलाव न केवल आर्थिक है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका को पुनः परिभाषित करने का अवसर भी प्रदान करता है।


 इस समाचार और विषयवस्तु पर आधारित कुछ संभावित प्रश्न दिए गए हैं, जो UPSC Mains (GS-II या GS-III), राज्य सेवा परीक्षा या समसामयिक विषयों पर निबंध के रूप में पूछे जा सकते हैं:


GS Paper II – अंतर्राष्ट्रीय संबंध और विदेश नीति से संबंधित प्रश्न:

  1. भारत की वाणिज्यिक नीति में चीन की भूमिका को सीमित करने का निर्णय किन-किन रणनीतिक और भू-राजनीतिक कारणों से प्रेरित है? चर्चा कीजिए।
  2. चीन की तुलना में यूरोप और उत्तरी अमेरिका के साथ व्यापारिक साझेदारी भारत के लिए किस प्रकार अधिक लाभकारी हो सकती है?
  3. भारत की विदेश व्यापार नीति में "नकारात्मक निवेश सूची" की भूमिका और चीन के निवेश पर उसके प्रभावों का विश्लेषण कीजिए।
  4. भारत की 'चीन प्लस वन' रणनीति का विश्लेषण करते हुए बताइए कि यह नीति वैश्विक व्यापार में भारत की स्थिति को कैसे प्रभावित कर सकती है।
  5. 'विश्वसनीय साझेदारों की खोज' की भारत की रणनीति को वैश्विक तकनीकी प्रतिस्पर्धा और राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में समझाइए।

GS Paper III – अर्थव्यवस्था और व्यापार से संबंधित प्रश्न:

  1. चीन से निवेश को सीमित करने का भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम और घरेलू विनिर्माण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
  2. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की दृष्टि से भारत की वर्तमान नीति में आए परिवर्तनों का विश्लेषण कीजिए।
  3. भारत की 'आत्मनिर्भर भारत' नीति और विदेशी निवेश नियंत्रण के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है?
  4. भारत की तकनीकी संप्रभुता की दिशा में नीति-निर्माण में व्यापारिक साझेदारों की भूमिका पर विचार कीजिए।

निबंध (Essay) हेतु संभावित विषय:

  1. "भू-राजनीति और व्यापार: 21वीं सदी में भारत की रणनीतिक प्राथमिकताएँ"
  2. "चीन से दूरी, पश्चिम की ओर झुकाव: भारत की बदलती व्यापारिक दिशा"
  3. "राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक नीति: एक अनिवार्य समन्वय"
  4. "नवाचार, निवेश और राष्ट्रहित: भारत की वैश्विक साझेदारी की नई परिभाषा"

5-DRDO ने ‘गौरव’ लॉन्ग-रेंज ग्लाइड बम का किया सफल परीक्षण, 100 किलोमीटर दूर लक्ष्य को मारा सटीक निशान

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने भारत की सैन्य क्षमताओं को और अधिक सुदृढ़ करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। हाल ही में DRDO ने ‘गौरव’ (GAURAV) नामक लॉन्ग-रेंज ग्लाइड बम का सफल परीक्षण किया है। यह बम सटीकता, मारक क्षमता और तकनीकी उत्कृष्टता का प्रतीक बन गया है, जिसने 100 किलोमीटर दूर स्थित लक्ष्य को अत्यंत सटीकता के साथ भेदा।

क्या है 'गौरव' लॉन्ग-रेंज ग्लाइड बम?

गौरव’ एक उच्च तकनीक से लैस लंबी दूरी तक मार करने वाला ग्लाइड बम है, जिसे भारतीय वायुसेना की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है। यह बम हवा से सतह पर मार करने की क्षमता रखता है और इसका मुख्य उद्देश्य दुश्मन के ठिकानों को दूर से ही निशाना बनाना है, जिससे भारतीय वायुसेना को बिना अपने पायलटों को खतरे में डाले ऑपरेशन को अंजाम देने की शक्ति मिलती है।

परीक्षण की विशेषताएं

  • यह परीक्षण ओडिशा के तटवर्ती इलाके में स्थित इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (ITR) से किया गया।
  • बम को एक लड़ाकू विमान सुखोई-30MKI से लॉन्च किया गया, जिसने निर्धारित दूरी पर स्थित लक्ष्य को सटीकता से नष्ट किया।
  • बम में लेजर और इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम का उपयोग किया गया है, जिससे इसकी मार्गदर्शन प्रणाली अत्यंत सटीक बनती है।
  • ‘गौरव’ बम की मारक क्षमता 100 किलोमीटर से अधिक है, जो इसे रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद प्रभावी बनाती है।

भारत की रक्षा तैयारियों को बढ़ावा

गौरव’ बम के सफल परीक्षण से भारत की आत्मनिर्भर रक्षा निर्माण नीति – आत्मनिर्भर भारत – को भी बल मिला है। यह परीक्षण यह भी दर्शाता है कि भारत अब अत्याधुनिक रक्षा तकनीकों को स्वदेशी रूप से विकसित करने की क्षमता रखता है। यह सैन्य उपकरण भविष्य में भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक मजबूत हथियार सिद्ध हो सकता है।

निष्कर्ष

DRDO द्वारा विकसित 'गौरव' लॉन्ग-रेंज ग्लाइड बम का सफल परीक्षण भारत की रक्षा वैज्ञानिक उपलब्धियों में एक मील का पत्थर है। यह भारत की वायु शक्ति को आधुनिक और प्रभावी बनाने की दिशा में उठाया गया सशक्त कदम है। इसके माध्यम से भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह न केवल अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर सजग है, बल्कि तकनीकी दृष्टि से आत्मनिर्भरता की ओर भी तेज़ी से अग्रसर है।


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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