रेपो दर में कटौती : आर्थिक सुस्ती से निपटने की एक नीतिगत चाल।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अप्रैल 2025 की मौद्रिक नीति बैठक में रेपो दर में 0.25% की कटौती करते हुए इसे 6% पर ला दिया है। यह निर्णय उस समय आया है जब वैश्विक व्यापार तनाव, अमेरिकी टैरिफ नीतियों और घरेलू मांग में सुस्ती के संकेत भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल रहे हैं। यह न केवल एक मौद्रिक कदम है, बल्कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक रणनीतिक प्रयास भी है।
आर्थिक संदर्भ और वैश्विक प्रभाव
हाल ही में अमेरिका द्वारा चीन पर 104% टैरिफ लगाने से वैश्विक व्यापार व्यवस्था में गंभीर तनाव उत्पन्न हुआ है। इसका प्रभाव भारत पर भी परोक्ष रूप से पड़ सकता है, विशेषकर निर्यात और पूंजी प्रवाह के क्षेत्रों में। RBI की यह दर कटौती ऐसे समय की गई है जब वैश्विक मंदी की आहट से भारतीय शेयर बाज़ार अस्थिर हो रहे हैं और निवेशकों का विश्वास डगमगाने लगा है।
रेपो दर कटौती: सकारात्मक पहलू
1. ऋण सस्ता होगा – रेपो दर में कटौती से होम लोन, ऑटो लोन और एमएसएमई ऋण की ब्याज दरों में गिरावट आएगी, जिससे उपभोग बढ़ेगा और मांग को बल मिलेगा।
2. निवेश को बढ़ावा – सस्ते क्रेडिट के कारण उद्योगों को पुनर्निवेश करने में सुविधा होगी, विशेषकर निर्माण और रियल एस्टेट क्षेत्रों में।
3. मंदी से बचाव – यह कदम एक संभावित आर्थिक मंदी से पहले की ‘पूर्व-चेतावनी प्रतिक्रिया’ के रूप में देखा जा सकता है।
चुनौतियाँ और सीमाएँ
1. मुद्रास्फीति का प्रबंधन – दरों में कटौती से अगर मांग बहुत तेज़ी से बढ़ती है, तो मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा। हालांकि, वर्तमान में CPI 4% के आसपास है जो RBI की सहनीय सीमा में है।
2. ब्याज दरों का सीमित ट्रांसमिशन – पूर्व के अनुभव दर्शाते हैं कि वाणिज्यिक बैंक अक्सर RBI की कटौती को उपभोक्ताओं तक पूरी तरह नहीं पहुंचाते।
3. राजकोषीय नीति का अभाव – मौद्रिक नीति अकेले आर्थिक पुनरुत्थान नहीं ला सकती, इसके लिए सरकार को पूंजीगत व्यय, रोजगार और ग्रामीण मांग पर ध्यान देना होगा।
आगे की राह
इस कटौती के बाद RBI ने मौद्रिक नीति का रुख ‘तटस्थ’ से ‘अनुकूलनशील’ कर दिया है, जो संकेत देता है कि आवश्यकतानुसार आगे और कटौतियाँ की जा सकती हैं। परंतु इस नीति को प्रभावी बनाने के लिए यह आवश्यक होगा कि बैंकिंग व्यवस्था में सुधार, ऋण प्रवाह में वृद्धि और नीति क्रियान्वयन में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
निष्कर्ष
रेपो दर में कटौती एक आवश्यक लेकिन आंशिक समाधान है। यह नीतिगत दिशा संकेत करती है कि RBI आर्थिक सुधार के लिए सक्रिय है, परंतु यह तभी सफल होगी जब वित्तीय प्रणाली, उपभोक्ता विश्वास और निवेश वातावरण में समानांतर सुधार हो। यह समय है जब मौद्रिक और राजकोषीय नीति के बीच समन्वय को और अधिक मजबूत किया जाए ताकि भारत आर्थिक अस्थिरता से सुरक्षित रह सके।
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