दैनिक समसामयिकी लेख संकलन : 16 अप्रैल 2025
यह रहा लेख का विश्लेषणात्मक और UPSC GS-3 (आंतरिक सुरक्षा) व निबंध लेखन के अनुकूल विस्तृत संस्करण:
शीर्षक-1: 26/11 मुंबई हमला: एक राज्य प्रायोजित आतंकवाद और रणनीतिक भ्रम की साजिश
भूमिका:
पाकिस्तान की रणनीति: भ्रम की पृष्ठभूमि
राज्य-प्रायोजित आतंकवाद का स्वरूप:
- पाकिस्तान ने न केवल आतंकवादियों को प्रशिक्षण और हथियार उपलब्ध कराए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरों में धोखा देने हेतु योजनाबद्ध रूप से इसे 'भारतीय मुसलमानों की प्रतिक्रिया' दर्शाने की कोशिश की।
- इसके माध्यम से उसकी दोहरी रणनीति थी — एक ओर भारत में धार्मिक विभाजन को बढ़ावा देना और दूसरी ओर आतंकवाद में अपनी भूमिका को छिपाना।
भारत की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की प्रतिक्रिया:
- भारत की एजेंसियों द्वारा अजमल कसाब को जीवित पकड़ना एक निर्णायक मोड़ था, जिसने पाकिस्तान की झूठी कहानी को नष्ट कर दिया।
- कसाब के कबूलनामे और तकनीकी सबूतों ने पाकिस्तान के झूठ को बेनकाब किया और उसे वैश्विक स्तर पर शर्मिंदा होना पड़ा।
आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव:
- इस हमले ने भारत की तटीय सुरक्षा, खुफिया समन्वय और त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र की खामियों को उजागर किया।
- इसके बाद NIA (National Investigation Agency) की स्थापना, NSG हब्स का विकेंद्रीकरण, और मल्टी एजेंसी सेंटर (MAC) के माध्यम से इंटेलिजेंस साझा करने की प्रणाली को मजबूती दी गई।
वैश्विक सन्दर्भ में संदेश:
निष्कर्ष:
नीचे 26/11 मुंबई आतंकी हमले और उससे संबंधित संभावित UPSC GS-3 और निबंध लेखन के दृष्टिकोण से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न:
GS-3 (आंतरिक सुरक्षा, आतंकवाद और खुफिया प्रणाली से संबंधित प्रश्न):
- "26/11 मुंबई हमला भारत की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है।" इस कथन की आलोचनात्मक समीक्षा करें।
- राज्य प्रायोजित आतंकवाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए, 26/11 हमले के संदर्भ में पाकिस्तान की भूमिका का विश्लेषण करें।
- भारतीय मुजाहिदीन (IM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) जैसे संगठनों की गतिविधियों के माध्यम से भारत में आतंकवाद के बदलते स्वरूप पर चर्चा करें।
- 26/11 के बाद भारत ने आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने हेतु किन प्रमुख संस्थागत सुधारों को अपनाया?
- "आतंकवाद से निपटने में खुफिया समन्वय की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।" उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
- भारत की तटीय सुरक्षा व्यवस्था में 26/11 के बाद हुए सुधारों पर प्रकाश डालिए।
- राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) की भूमिका और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें।
निबंध लेखन के संभावित शीर्षक:
- "26/11: एक आतंकवादी हमला या एक रणनीतिक युद्ध?"
- "राज्य प्रायोजित आतंकवाद और वैश्विक सुरक्षा की चुनौतियाँ"
- "आतंकवाद के विरुद्ध भारत की नीति: अनुभव, सुधार और भविष्य की दिशा"
- "जब सुरक्षा चूक बन गई राष्ट्रीय आपदा: 26/11 की सीख"
- "आतंकवाद और अंतरराष्ट्रीय राजनीति: दोषारोपण से समाधान तक"
2-हिंदूफोबिया के खिलाफ कानून: क्या भारत को भी इस दिशा में कदम उठाना चाहिए?
भूमिका:
आज के समय में जब धार्मिक सहिष्णुता और विविधता को वैश्विक समाज की शक्ति माना जाता है, वहीं दूसरी ओर कुछ देशों और समुदायों में धार्मिक घृणा और भेदभाव की घटनाएँ चिंता का विषय बनती जा रही हैं। ऐसे ही एक गंभीर लेकिन कम चर्चित विषय – ‘हिंदूफोबिया’ – के खिलाफ अमेरिका के जॉर्जिया राज्य द्वारा लाया गया बिल न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह एक नई सोच और चेतना का संकेत भी देता है। यह कदम अब वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बन चुका है कि क्या भारत जैसे बहुधार्मिक और लोकतांत्रिक राष्ट्र को भी इस दिशा में कोई पहल करनी चाहिए?
जॉर्जिया का ऐतिहासिक कदम: पहला 'हिंदूफोबिया' बिल
मार्च 2024 में अमेरिका के जॉर्जिया राज्य ने ‘हिंदूफोबिया’ के खिलाफ एक विशेष बिल पेश कर दुनिया का पहला ऐसा क्षेत्र बनने का गौरव प्राप्त किया, जिसने हिंदू-विरोधी भेदभाव को कानूनी रूप से मान्यता दी। इस कानून के तहत अब हिंदू धर्म या समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाने, हिंसा करने, या सामाजिक बहिष्कार जैसे कृत्यों को राज्य की घृणा अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है। इससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे मामलों में कार्रवाई का स्पष्ट आधार मिलेगा।
इस बिल को अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों – रिपब्लिकन और डेमोक्रेट – का समर्थन मिला, जो यह दर्शाता है कि यह कानून किसी एक समुदाय का पक्ष नहीं लेता, बल्कि एक सांस्कृतिक और मानवीय मूल्यों की रक्षा का प्रयास है।
क्या अन्य देशों में है ऐसा कोई कानून?
दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष माने जाने वाले देशों में भी धार्मिक घृणा के खिलाफ कानून मौजूद हैं, लेकिन ‘हिंदूफोबिया’ को विशेष रूप से परिभाषित करने वाला कानून अब तक नहीं था।
कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में धार्मिक घृणा के विरुद्ध कानून तो हैं, लेकिन हिंदू धर्म के खिलाफ घृणा या हमलों को अब तक विशेष पहचान नहीं मिली थी।
कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमलों और मूर्ति तोड़े जाने की घटनाएँ सामने आईं, परंतु उन्हें ‘हिंदूफोबिया’ के रूप में नहीं, बल्कि सामान्य हेट क्राइम के रूप में देखा गया।
भारतवंशी प्रवासियों के बढ़ते प्रभाव के चलते अब इन देशों में हिंदूफोबिया की पहचान और दंडात्मक कार्रवाई की माँग भी उठने लगी है।
भारत में ऐसी किसी कानून की जरूरत क्यों है?
भारत में संविधान द्वारा हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है, लेकिन फिर भी हिंदू धर्म को लेकर फैलाई जा रही विकृत जानकारियाँ, हिंदू प्रतीकों और परंपराओं का उपहास, और राजनीतिक रूप से प्रेरित हिंदू-विरोधी बयानबाज़ी समय-समय पर सामने आती रही है।
1. धार्मिक बहुलता में संतुलन ज़रूरी:
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में सभी धर्मों को बराबरी का सम्मान और सुरक्षा मिलनी चाहिए। अगर इस्लामोफोबिया और एंटी-सेमिटिज्म पर कानून बन सकते हैं, तो हिंदूफोबिया को नजरअंदाज करना न्यायोचित नहीं है।
2. मीडिया और सोशल मीडिया में हिंदू-विरोधी कंटेंट:
कुछ फिल्में, वेबसीरीज, सोशल मीडिया पोस्ट्स और अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स में हिंदू धर्म और संस्कृति को एकतरफा नकारात्मक रूप में पेश किया जाता है, जो समाज में विभाजन को जन्म देता है।
3. प्रवासी हिंदू समुदाय की सुरक्षा:
भारत से बाहर बसे करोड़ों हिंदू आज सांस्कृतिक और धार्मिक अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारत यदि 'हिंदूफोबिया' के खिलाफ कोई क़ानून लाता है तो यह वैश्विक स्तर पर एक संदेश होगा कि हिंदू धर्म के अनुयायी भी कानूनी सुरक्षा के हक़दार हैं।
*क्या भारत में ऐसा कानून बन सकता है?*
तकनीकी रूप से, हाँ।
भारत का संविधान, विशेष रूप से अनुच्छेद 14, 15, 25 और 26, धार्मिक समानता और स्वतंत्रता की बात करता है। भारतीय दंड संहिता में भी कई धाराएँ हैं जो धार्मिक घृणा, भावना आहत करने या सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ी हैं (जैसे IPC धारा 153A, 295A)। लेकिन अब आवश्यकता है एक विशेष और स्पष्ट कानून की, जो 'हिंदूफोबिया' जैसे कृत्यों को नामित करे और प्रभावी ढंग से दंडनीय बनाए।
हालांकि, यह प्रयास धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक संतुलन के साथ किया जाना चाहिए, ताकि यह किसी एक धर्म के पक्ष में पक्षपात न लगे। इसे ‘धार्मिक घृणा निरोधक कानून’ की तरह प्रस्तुत किया जा सकता है, जिसमें हिंदूफोबिया के साथ-साथ इस्लामोफोबिया, क्रिश्चियनफोबिया आदि को भी शामिल किया जाए।
निष्कर्ष:
‘हिंदूफोबिया’ के खिलाफ अमेरिका के जॉर्जिया राज्य का कदम एक वैचारिक और कानूनी क्रांति का प्रारंभ हो सकता है। यह न केवल हिंदू समुदाय को पहचान और सुरक्षा देता है, बल्कि यह अन्य देशों को भी सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वे धार्मिक विविधता के साथ न्याय कर पा रहे हैं।
भारत, जो कि हिंदू धर्म की जन्मभूमि है, उसे न केवल अपने नागरिकों बल्कि वैश्विक हिंदू समुदाय की भावनाओं और सुरक्षा के लिए भी एक सक्रिय और संरक्षक भूमिका निभानी चाहिए। समय आ गया है कि भारत एक उदाहरण बने – कानून के माध्यम से हर धर्म के सम्मान और सुरक्षा की गारंटी देने वाला एक सशक्त राष्ट्र।
3-वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत के बिजली उपकरण उद्योग के लिए एक रणनीतिक अवसर
हाल ही में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में यह संकेत दिया गया है कि चीन पर अमेरिकी टैरिफ और वहाँ बढ़ती उत्पादन लागत के चलते भारत के लिए बिजली उपकरण उद्योग के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व स्थापित करने का एक उल्लेखनीय अवसर उत्पन्न हुआ है। यह विश्लेषण न केवल भारत की निर्यात क्षमताओं को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था में उभरते परिवर्तनों की ओर भी संकेत करता है।
चीन पर अमेरिकी टैरिफ: भारत के लिए अवसर
अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए गए टैरिफ, विशेष रूप से ट्रंप युग से लेकर वर्तमान तक, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में पुनर्संरचना की प्रक्रिया को तेज कर चुके हैं। इसमें चीन पर निर्भरता कम करने की नीति अपनाई जा रही है, जिसे 'चीन +1 रणनीति' कहा जाता है। इसका सीधा लाभ उन देशों को हो सकता है जो उत्पादन और निर्यात की दृष्टि से प्रतिस्पर्धी विकल्प प्रदान कर सकते हैं – भारत उनमें अग्रणी हो सकता है।
भारत की शक्ति और संभावनाएँ
भारत के पास पहले से ही एक मजबूत और विविधीकृत बिजली उपकरण उद्योग है, जिसमें ट्रांसफॉर्मर, पावर केबल, मोटर, गियरबॉक्स और अन्य औद्योगिक उपकरणों का उत्पादन शामिल है। नीति आयोग के अनुसार, भारत 2035 तक $25 बिलियन से अधिक मूल्य के बिजली उपकरण निर्यात करने की क्षमता रखता है। यह न केवल निर्यात आधारित विकास को बल देगा, बल्कि रोजगार, नवाचार और तकनीकी आत्मनिर्भरता को भी सशक्त करेगा।
नीति आयोग के सुझाव और आवश्यक सुधार
नीति आयोग ने इस अवसर का लाभ उठाने हेतु कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं:
- उद्योग के लिए अनुकूल नीति ढाँचा: निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं, टैक्स रियायतों और व्यापार समझौतों के माध्यम से वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सुधार किया जा सकता है।
- बुनियादी ढांचे में सुधार: लॉजिस्टिक्स, ऊर्जा आपूर्ति और उद्योगों के लिए औद्योगिक क्लस्टर का विकास।
- तकनीकी नवाचार और अनुसंधान: गुणवत्ता मानकों का उन्नयन और नवाचार पर बल देने से भारत को वैश्विक मानकों के अनुरूप उत्पाद तैयार करने में सहायता मिलेगी।
- कौशल विकास: प्रशिक्षित श्रमिक बल के अभाव में उत्पादन की गुणवत्ता और गति प्रभावित हो सकती है, अतः स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रमों का विस्तार आवश्यक है।
चुनौतियाँ और आवश्यक सावधानियाँ
हालाँकि अवसर बड़ा है, लेकिन भारत को कुछ प्रमुख चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा:
- कच्चे माल की आपूर्ति में निर्भरता
- उच्च वित्तीय लागत
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा में चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों की चुनौती
- गुणवत्तापूर्ण ब्रांड पहचान की कमी
इन चुनौतियों के समाधान के लिए एक समन्वित रणनीति की आवश्यकता है जिसमें सरकार, उद्योग और अनुसंधान संस्थान मिलकर कार्य करें।
निष्कर्ष: आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम
भारत के बिजली उपकरण उद्योग के पास वर्तमान वैश्विक व्यापारिक माहौल में अपनी भूमिका सशक्त करने का एक स्वर्णिम अवसर है। यदि इस अवसर को नीति निर्माण, औद्योगिक निवेश और वैश्विक साझेदारियों के माध्यम से साध लिया जाए, तो भारत न केवल इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है, बल्कि एक निर्यात महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने भी आ सकता है। यह “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” अभियानों को गति देने वाला एक ठोस स्तंभ सिद्ध हो सकता है।
4-तमिलनाडु ने राज्यों के अधिकारों की रक्षा के लिए पैनल का गठन किया
भूमिका:
पैनल की प्रकृति और उद्देश्य:
संघीय ढांचे पर प्रभाव:
राजनीतिक संदर्भ और विपक्षी एकजुटता:
निष्कर्ष:
यह विषय UPSC और अन्य राज्य सेवा परीक्षाओं के लिए समसामयिक और संवैधानिक दोनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे जुड़े कुछ संभावित प्रश्न निम्नलिखित हैं:
मुख्य परीक्षा (UPSC Mains) हेतु संभावित प्रश्न:
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"संघीय ढांचे की रक्षा हेतु राज्यों की सक्रियता भारतीय लोकतंत्र के लिए क्यों आवश्यक है?" — इस कथन के आलोक में तमिलनाडु द्वारा गठित पैनल की भूमिका का विश्लेषण करें।
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तमिलनाडु द्वारा राज्यों के अधिकारों की रक्षा हेतु पैनल गठन को भारत में 'सहकारी संघवाद' बनाम 'प्रतिस्पर्धी संघवाद' की बहस से कैसे जोड़ा जा सकता है?
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राज्यपालों की भूमिका और केंद्र के हस्तक्षेप के मुद्दे भारतीय संघवाद को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? हाल के उदाहरणों सहित उत्तर दीजिए।
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"भारत में वास्तविक संघवाद तभी संभव है जब राज्यों को नीति-निर्माण में सक्रिय भागीदारी मिले।" — इस कथन की आलोचनात्मक समीक्षा करें।
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भारतीय संविधान के किन प्रावधानों के तहत राज्यों को संघीय स्वायत्तता प्राप्त है? क्या वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इनकी पुनर्व्याख्या आवश्यक है?
निबंध लेखन हेतु संभावित विषय:
- "संघीय भारत में राज्यों की भूमिका: अधिकार बनाम वास्तविकता"
- "संघवाद का भविष्य: क्या राज्य अपनी पहचान खो रहे हैं?"
- "राज्यों का सशक्तिकरण: लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने की दिशा में एक कदम"
5-भारत न्याय रिपोर्ट 2025: समावेशी न्याय प्रणाली की कसौटी पर भारतीय राज्य – UPSC के दृष्टिकोण से एक विश्लेषणात्मक लेख
भूमिका
प्रमुख निष्कर्ष – UPSC की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बिंदु:
1. लैंगिक न्याय की अनदेखी – पुलिस बल में महिलाएं नदारद
रिपोर्ट का सबसे चिंताजनक निष्कर्ष यह है कि देश का कोई भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश पुलिस बल में निर्धारित महिला आरक्षण (20–33%) को पूरा नहीं कर पाया।
- यह दर्शाता है कि महिला सशक्तिकरण के नीतिगत वादों और वास्तविक क्रियान्वयन में गहरी खाई है।
- UPSC GS Paper 2 में Governance & Women Empowerment विषयों के उत्तरों में इसे सशक्त उदाहरण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
- महिला अपराधों की जाँच, रिपोर्टिंग और पीड़िता के प्रति संवेदनशीलता सीधे तौर पर पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी से जुड़ी है।
2. न्यायपालिका में भारी लंबित मामले और संसाधनों की कमी
- रिपोर्ट के अनुसार देश की अधिकांश न्यायालयों में जजों की भारी कमी, बुनियादी ढांचे का अभाव, और मामलों का अत्यधिक लंबित होना एक गंभीर समस्या है।
- उदाहरण: कई राज्यों में प्रति लाख जनसंख्या पर न्यायाधीशों की संख्या न्यूनतम अनुशंसित स्तर (50 प्रति लाख) से काफी कम है।
- GS Paper 2 – Judiciary Reforms के तहत इसे न्याय प्रणाली की बाधाओं के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
3. जेल प्रणाली में असमानता और अत्यधिक भीड़भाड़
- रिपोर्ट बताती है कि देश की जेलों में 75% से अधिक कैदी विचाराधीन हैं, जिनमें अधिकांश सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों से आते हैं।
- जेलों में महिला बंदियों के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं।
- GS Paper 2 और GS Paper 3 में Prison Reforms, Human Rights & Internal Security जैसे विषयों में इसे प्रत्यक्ष उदाहरण के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
4. कानूनी सहायता तक सीमित पहुँच
- रिपोर्ट ने यह भी रेखांकित किया है कि निःशुल्क कानूनी सहायता प्रणाली (Legal Aid Services), जो गरीबों और वंचितों के लिए न्याय का एकमात्र माध्यम हो सकती है, वह खर्च और सेवाओं दोनों के मामले में कमजोर है।
- Social Justice और Access to Justice जैसे उत्तरों में यह रिपोर्ट नीति-निर्माण में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
विवेचन: न्याय का मतलब केवल कानून नहीं, बल्कि पहुँच और समान भागीदारी भी है
India Justice Report 2025 यह स्पष्ट करती है कि भारत में न्याय केवल संविधानिक आदर्शों पर आधारित न होकर प्रशासनिक इच्छाशक्ति, संसाधनों की उपलब्धता और समावेशी सोच पर भी निर्भर है।
यह रिपोर्ट बताती है कि केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे राज्य लगातार न्याय प्रणाली में सुधार की दिशा में प्रयास कर रहे हैं, वहीं बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य अभी भी मूलभूत संरचनात्मक सुधारों से दूर हैं। यह भारत के संघीय ढांचे में कार्यान्वयन की विषमता (Asymmetry in Governance) को भी उजागर करता है।
UPSC के लिए लेखन में उपयोग योग्य कथन और वाक्यांश:
- “Justice is not merely the enforcement of law, but the assurance of accessibility, efficiency and empathy.”
- “India’s justice system reflects not only procedural gaps but structural inequalities rooted in gender and class.”
- “Data-based reports like IJR bridge the gap between perception and reality in public policy.”
निष्कर्ष:
एक प्रभावी उत्तरकार के रूप में, हमें इस रिपोर्ट को केवल आँकड़ों की सूची नहीं, बल्कि एक नीति-उन्मुख दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए, जो भारत को एक समावेशी और न्यायपूर्ण राष्ट्र बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करे।
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