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Daily Current Affairs: 27 April 2025

दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...

UPSC Current Affairs in Hindi : 19 April 2025

दैनिक समसामयिकी लेख संकलन: 19 अप्रैल 2025

संपादकीय लेख-1: दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यकों की स्थिति और भारत की कूटनीतिक भूमिका: एक नैतिक और रणनीतिक दायित्व


दक्षिण एशिया, जहां विविधता को सभ्यता की नींव माना गया है, आज धार्मिक असहिष्णुता, मानवाधिकार हनन और अल्पसंख्यकों के दमन जैसे संकटों से जूझ रहा है। बांग्लादेश, जो स्वतंत्रता के समय एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में उभरा था, आज वहां के हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे व्यवस्थित उत्पीड़न के आरोपों से घिरा हुआ है। भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा इस संदर्भ में जारी हालिया बयान, केवल एक कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि एक गंभीर चेतावनी भी है कि क्षेत्रीय स्थिरता का आधार केवल आर्थिक सहयोग नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और मानवाधिकारों की रक्षा भी है।


बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और अल्पसंख्यकों की चुनौती

वर्तमान में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार, जिसका नेतृत्व प्रो. मोहम्मद यूनुस कर रहे हैं, चुनावी संक्रमण काल से गुजर रही है। इसी दौर में हिंदू समुदाय के मंदिरों पर हमले, ज़बरन धर्मांतरण, और सामाजिक बहिष्कार की घटनाओं में वृद्धि हुई है। ये घटनाएँ इस बात की ओर संकेत करती हैं कि देश की शासन व्यवस्था अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने में असफल रही है।
भारत ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया है कि धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के बिना कोई भी लोकतंत्र पूर्ण नहीं हो सकता। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या भारत को केवल देखता रहना चाहिए, या फिर एक क्षेत्रीय शक्ति होने के नाते सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए?


भारत की विदेश नीति: नैतिकता और रणनीति के द्वंद्व में संतुलन

भारत की विदेश नीति "नेबरहुड फर्स्ट" और "सागर" (Security and Growth for All in the Region) जैसे सिद्धांतों पर आधारित रही है, जिनका उद्देश्य पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना है। किंतु जब पड़ोसी देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हों, तो यह द्वंद्व उत्पन्न होता है — क्या संप्रभुता के नाम पर मौन रहना उचित है?

भारत को यह समझना होगा कि मानवाधिकारों की रक्षा केवल एक नैतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि कूटनीतिक अवसर भी है। यह अवसर है भारत की वैश्विक छवि को एक मानवतावादी लोकतंत्र के रूप में प्रस्तुत करने का। इसके तहत भारत को संयुक्त राष्ट्र, सार्क और बिम्सटेक जैसे मंचों पर इस मुद्दे को उठाना चाहिए। इसके अतिरिक्त Track-II Diplomacy, बुद्धिजीवियों, मीडिया और नागरिक संगठनों के माध्यम से इस विषय पर जागरूकता बढ़ाई जा सकती है।


द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव और संभावित उपाय

भारत और बांग्लादेश के संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। व्यापार, सीमा सुरक्षा, और जल-विवाद जैसे कई मुद्दों पर सहयोग बना हुआ है। लेकिन यदि बांग्लादेश अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं करता, तो यह सहयोग दीर्घकाल में कमजोर हो सकता है।

भारत को बांग्लादेश से स्पष्ट और ठोस आश्वासन लेना चाहिए कि वहां अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित हैं। यदि यह संभव न हो तो भारत को अपनी नीति में मानवाधिकार सशर्तता (Human Rights Conditionality) को शामिल करने पर विचार करना चाहिए — यानी सहायता, व्यापार और सहयोग ऐसे देशों से किया जाए जो नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करें।


निष्कर्ष: भारत की भूमिका एक 'वॉचडॉग' और 'सहयोगी' दोनों के रूप में

भारत को इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि वह एक ‘बाहरी हस्तक्षेपकारी’ की छवि न बनाए, बल्कि एक संवेदनशील पड़ोसी के रूप में कार्य करे। उसे कूटनीति, नैतिकता और मानवतावाद के बीच संतुलन साधते हुए क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखना है। क्योंकि अगर पड़ोसी देशों में धार्मिक असहिष्णुता पनपेगी, तो उसकी छाया भारत की सीमाओं तक अवश्य पहुंचेगी।

अतः बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों की रक्षा केवल उनके अस्तित्व का प्रश्न नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया के भविष्य की दिशा तय करने वाला प्रश्न है — और भारत उस दिशा-निर्धारण में केंद्रीय भूमिका निभा सकता है।


नीचे इस समसामयिक मुद्दे पर आधारित UPSC Mains (GS-II) के दृष्टिकोण से संभावित प्रश्न दिए गए हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय संबंध, मानवाधिकार, तथा भारत की विदेश नीति से संबंधित हैं:


GS Paper-II (Governance, Constitution, Polity, Social Justice and International relations)

विषय: International Relations, Bilateral Relations, Human Rights


संभावित प्रश्न (UPSC Mains Style):

  1. "भारत-बांग्लादेश संबंधों की स्थिरता का आधार केवल आर्थिक सहयोग नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा भी है।" – इस कथन के आलोक में भारत की विदेश नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए। (250 शब्द)

  2. "धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा एक सार्वभौमिक मानवाधिकार है, जिसे किसी देश की संप्रभुता का आड़ लेकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।" – दक्षिण एशियाई परिप्रेक्ष्य में इस कथन की व्याख्या कीजिए। (250 शब्द)

  3. बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे व्यवस्थित उत्पीड़न की घटनाओं का भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? भारत को इस संदर्भ में कौन-कौन से कूटनीतिक उपाय अपनाने चाहिए? (250 शब्द)

  4. "पड़ोसी देशों में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन पर भारत की भूमिका नैतिक दायित्व से अधिक कूटनीतिक अवसर भी है।" – इस कथन की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए। (250 शब्द)


लेखक: Arvind Singh PK Rewa

ब्लॉग: Gynamic GK

टैग्स: #UPSCMains #HumanRights #IndiaBangladeshRelations #SouthAsia #GS2 #Diplomacy #MinorityRights


2-पाकिस्तान-श्रीलंका सैन्य अभ्यास की योजना क्यों टली? जानिए भारत की भूमिका.

हाल ही में एक अहम कूटनीतिक घटनाक्रम सामने आया, जब पाकिस्तान और श्रीलंका की नौसेनाओं के बीच प्रस्तावित सैन्य अभ्यास की योजना अचानक स्थगित कर दी गई। ये अभ्यास श्रीलंका के त्रिंकोमाली बंदरगाह के समीप आयोजित होना था — जो हिंद महासागर क्षेत्र का एक बेहद संवेदनशील और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इलाका है।

तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि यह योजना कुछ ही हफ्तों पहले shelve (स्थगित) कर दी गई? जवाब है — भारत की कूटनीतिक सतर्कता और स्पष्ट आपत्ति

त्रिंकोमाली: एक बंदरगाह, कई रणनीतियाँ

श्रीलंका का त्रिंकोमाली बंदरगाह दुनिया के सबसे गहरे प्राकृतिक बंदरगाहों में से एक है। यहां से पूरे हिंद महासागर पर नजर रखी जा सकती है, यही वजह है कि यह भारत के लिए बेहद अहम है।

भारत वर्षों से इस क्षेत्र को अपनी समुद्री सुरक्षा नीति का केंद्र मानता रहा है। ऐसे में यदि पाकिस्तान — जो भारत का पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी है — इस इलाके में सैन्य गतिविधियाँ करता है, तो भारत के लिए यह चिंता का विषय बनता है।

भारत की आपत्ति और श्रीलंका की प्रतिक्रिया

मीडिया रिपोर्ट्स और सूत्रों के मुताबिक, भारत ने श्रीलंका सरकार को स्पष्ट तौर पर अपनी आपत्ति से अवगत कराया। नई दिल्ली ने यह स्पष्ट किया कि इस प्रकार के सैन्य अभ्यास से क्षेत्रीय संतुलन पर असर पड़ सकता है और इससे भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ेंगी।

श्रीलंका ने भारत की बात को गंभीरता से लेते हुए अभ्यास को फिलहाल के लिए टाल दिया है। यह कदम भारत-श्रीलंका के मजबूत द्विपक्षीय संबंधों और परस्पर समझ को भी दर्शाता है।

बढ़ती समुद्री प्रतिस्पर्धा

यह मामला केवल पाकिस्तान-श्रीलंका या भारत-श्रीलंका तक सीमित नहीं है। दरअसल, पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक प्रतिस्पर्धा तेज हो रही है। चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कई देश इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहे हैं। ऐसे में भारत हर गतिविधि पर पैनी नजर रखे हुए है।

निष्कर्ष: कूटनीति की जीत

यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि कैसे कूटनीतिक संवाद और प्रभावी नीति निर्माण क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। भारत ने बिना किसी आक्रामक रवैये के अपने हितों की रक्षा की और श्रीलंका ने भी अपने पुराने मित्र देश की चिंता को प्राथमिकता दी।


क्या भारत की यह नीति दीर्घकाल तक सफल रहेगी? क्या छोटे पड़ोसी देश दो बड़े देशों के बीच संतुलन बना पाएंगे?
अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर साझा करें!


शीर्षक-3: लद्दाख में मोबाइल कनेक्टिविटी और इसके व्यापक प्रभाव

प्रस्तावना:

भारत का सीमावर्ती क्षेत्र लद्दाख, जहाँ प्रकृति की कठोरता और दुर्गमता राष्ट्र की रक्षा की सबसे बड़ी परीक्षा लेती है, अब एक ऐतिहासिक परिवर्तन का साक्षी बन रहा है। भारतीय सेना द्वारा गलवान घाटी और सियाचिन ग्लेशियर जैसे सामरिक रूप से अति-संवेदनशील क्षेत्रों में मोबाइल नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध कराना केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, मानवाधिकार और एक भारत-श्रेष्ठ भारत की संकल्पना को साकार करने की दिशा में एक दूरदर्शी प्रयास है।


संचार सुविधाएँ: सामरिक और सामाजिक दृष्टिकोण से क्रांतिकारी बदलाव

संचार एक आधुनिक राष्ट्र का आधार है। लद्दाख के इन दुर्गम क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी उपलब्ध कराना वहाँ तैनात सैनिकों के लिए मानसिक राहत का साधन है। अत्यधिक ठंड और विषम परिस्थितियों में सेवा दे रहे सैनिक अब अपने परिवार से सीधे संपर्क कर सकते हैं। यह भावनात्मक जुड़ाव उनकी कार्यक्षमता और मनोबल दोनों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

साथ ही, सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों के लिए यह सुविधा शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, डिजिटल बैंकिंग और सरकारी योजनाओं की पहुँच को सुलभ बनाएगी। यह ‘डिजिटल डिवाइड’ को कम करने का एक सशक्त माध्यम बन सकता है।


सैन्य अभियानों में आधुनिक संचार तकनीक की भूमिका

21वीं सदी के सैन्य अभियानों में सूचनाओं की गति और सुरक्षा निर्णायक होती है। गलवान और सियाचिन जैसे क्षेत्रों में संचार के आधुनिक साधनों की उपलब्धता सेना को रियल टाइम इनपुट, समन्वय और आपातकालीन प्रतिक्रिया में मदद करती है। मोबाइल नेटवर्क, सैटेलाइट कनेक्टिविटी और उच्च फ्रिक्वेंसी संचार माध्यम सामरिक कुशलता को कई गुना बढ़ा देते हैं।


राष्ट्र की एकता का सशक्त प्रतीक

यह पहल केवल सैन्य दृष्टिकोण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सीमांत क्षेत्रों को मुख्यधारा से जोड़ने की एक रणनीतिक कवायद है। सीमावर्ती इलाकों में कनेक्टिविटी का विकास वहाँ के नागरिकों को यह संदेश देता है कि वे देश के ‘सीमांत’ नहीं, बल्कि ‘मूलभूत’ भाग हैं। यह ‘इंटीग्रेटेड नेशनल डेवेलपमेंट’ की अवधारणा को ज़मीनी स्तर पर मूर्त रूप देता है।


चुनौतियाँ और आवश्यक कदम

हालांकि, इस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियाँ, तापमान, बर्फबारी और दुर्गमता ऐसे हैं जो तकनीकी स्थापना और रखरखाव को कठिन बना देते हैं। इसके लिए दीर्घकालिक नीति, स्थानीय प्रशासन का सहयोग, और उच्च तकनीक आधारित समाधान की आवश्यकता है।

साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह सुविधा केवल सेना तक सीमित न रह जाए, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी समान रूप से लाभ मिले। इसके लिए नागरिक संचार ढाँचे का भी समानांतर विकास किया जाना चाहिए।


निष्कर्ष:

लद्दाख में मोबाइल कनेक्टिविटी की यह पहल केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि यह एक रणनीतिक, सामाजिक और भावनात्मक विजय है। भारतीय सेना ने यह सिद्ध किया है कि वह केवल सीमाओं की सुरक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में भी अग्रणी भूमिका निभा रही है। यह एक ऐसा कदम है, जो सीमाओं को नहीं, दिलों को जोड़ता है।


विस्तारित विचार हेतु संभावित निबंध विषय:

  • ‘सीमावर्ती विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा: एक समन्वित दृष्टिकोण’
  • ‘संचार क्रांति: सैनिक से नागरिक तक’
  • ‘भारतीय सेना: रक्षक से राष्ट्र-निर्माता तक की यात्रा’

4-स्वस्थ भारत की ओर एक कदम: 'Food is Medicine' और लिवर स्वास्थ्य पर केंद्रित जनजागरूकता

हर वर्ष 19 अप्रैल को मनाया जाने वाला विश्व लिवर दिवस केवल एक दिन की जागरूकता नहीं, बल्कि यह जीवनशैली और स्वास्थ्य के प्रति दीर्घकालिक सोच का आह्वान है। 2025 की थीम 'Food is Medicine' हमें पुनः उस बुनियादी सिद्धांत की याद दिलाती है कि भोजन ही सबसे प्रभावी औषधि बन सकता है — यदि हम इसे समझदारी से चुनें और अपनाएं।

प्रधानमंत्री का संदेश: नेतृत्व और नैतिक जिम्मेदारी का प्रतीक

इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व लिवर दिवस के अवसर पर नागरिकों से तेल की खपत घटाने, मोटापे से सतर्क रहने और संपूर्ण स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की अपील की। यह संदेश एक सामान्य जन जागरूकता के स्तर से कहीं ऊपर है — यह नेतृत्व की नैतिक जिम्मेदारी और प्रोएक्टिव गवर्नेंस का उदाहरण है। जब कोई शीर्ष जनप्रतिनिधि स्वयं छोटे स्वास्थ्य सुधारों की वकालत करता है, तो यह व्यापक सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत बन सकता है।

"Small lifestyle changes can lead to significant social transformation."

इस विचार को मोदी के वक्तव्य से बेहतर और क्या समर्थन मिल सकता है? यह कथन नीति-निर्माताओं की सोच और आम नागरिकों की आदतों के बीच एक पुल बनाता है।

'Food is Medicine': आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली में पारंपरिक सोच की वापसी

आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में जहां उपचार केंद्रित दृष्टिकोण हावी है, वहीं 'Food is Medicine' जैसी अवधारणाएँ निवारक स्वास्थ्य प्रणाली (Preventive Healthcare) की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं। भारत जैसे देश में जहां स्वास्थ्य संसाधन सीमित हैं, वहां यह दृष्टिकोण कम लागत, अधिक प्रभावशीलता का समाधान प्रदान करता है।

लिवर स्वास्थ्य पर आधारित यह थीम यह बताती है कि भोजन केवल पेट भरने का साधन नहीं, बल्कि शरीर और समाज को स्वस्थ रखने का आधार बन सकता है।

लिवर स्वास्थ्य: नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता

भारत में लिवर रोग जैसे फैटी लिवर, हेपेटाइटिस और सिरोसिस तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका मुख्य कारण अनुचित खानपान, शारीरिक निष्क्रियता और बढ़ता मोटापा है। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए सरकार को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:

  • स्कूल स्तर पर पोषण शिक्षा
  • सस्ती और सुलभ स्क्रीनिंग सुविधाएं
  • फूड लेबलिंग और जन-जागरूकता अभियानों का विस्तार
  • जंक फूड और अत्यधिक तेल/नमक वाले उत्पादों पर नियंत्रण

इन उपायों से हम लिवर और अन्य जीवनशैली जनित रोगों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य और लोक नेतृत्व का रिश्ता

प्रधानमंत्री की अपील यह दर्शाती है कि नैतिक नेतृत्व केवल नीति निर्माण में नहीं, बल्कि जीवनशैली में उदाहरण प्रस्तुत करने में भी होता है। UPSC के GS Paper 4 में नेतृत्व के नैतिक आयामों की चर्चा होती है, और यह प्रसंग उसी का जीवंत उदाहरण है।

"Ethical responsibility of public figures lies in promoting not just political agendas but also public well-being."

जब नेता स्वयं स्वास्थ्य-संबंधी अनुशासन अपनाते हैं और जनमानस को प्रेरित करते हैं, तो यह सामूहिक नैतिकता की भावना को सशक्त करता है।

UPSC दृष्टिकोण से प्रासंगिकता

यह विषय UPSC की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए कई आयामों में उपयोगी है:

  • GS Paper 2: सार्वजनिक स्वास्थ्य, जनकल्याण योजनाएं, जागरूकता अभियान
  • GS Paper 4: नैतिक नेतृत्व, व्यक्तिगत उदाहरण की शक्ति, निवारक नैतिकता
  • Essay Paper: "Food is Medicine", "Health is Wealth", "Public Awareness and Lifestyle Diseases" जैसे विषयों पर प्रभावशाली निबंध लेखन

निष्कर्ष

'Food is Medicine' कोई नारा नहीं, बल्कि एक जीवनदर्शन है। प्रधानमंत्री का लिवर स्वास्थ्य पर बल देना, सिर्फ एक बीमारी की चर्चा नहीं, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है। यदि हम निवारक उपायों को अपनाएं, भोजन को औषधि समझें और नेतृत्व से प्रेरणा लें — तो एक स्वस्थ भारत केवल कल्पना नहीं, एक सच्चाई बन सकता है।


लेखक: Arvind Singh, Gynamic GK Blog
टैग्स: #WorldLiverDay #FoodIsMedicine #UPSCGS #PublicHealth #PreventiveCare #EthicsInGovernance



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