दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...
गाजा का मानवीय संकट: अन्नहीनता की पीड़ा और अंतरात्मा की पुकार 60 दिनों से भी अधिक समय हो गया है जब गाज़ा पट्टी में न तो खाद्य सामग्री पहुँची, न ईंधन, न दवाइयाँ, और न ही कोई अन्य आवश्यक वस्तु। इस समय वहाँ की लगभग 2.3 मिलियन आबादी भूख, भय और असहायता के भंवर में फँसी हुई है। बाजार खाली हो चुके हैं, राहत एजेंसियाँ हाथ बाँध चुकी हैं, और फिलिस्तीनी परिवार अपने बच्चों को बस जिंदा रखने की जद्दोजहद में लगे हैं। गाजा में जीवन अब डिब्बाबंद सब्जियों, चावल, पास्ता और मसूर की दाल के इर्द-गिर्द सिमट गया है। दूध, पनीर, फल और मांस जैसे पोषक तत्वों से भरपूर आहार अब सिर्फ एक बीती याद बन चुके हैं। ब्रेड और अंडे जैसे साधारण आहार भी आम लोगों की पहुँच से दूर हो गए हैं। जो थोड़ी-बहुत सब्जियाँ या खाद्य सामग्री बाजार में उपलब्ध हैं, उनकी कीमतें इतनी बढ़ चुकी हैं कि अधिकांश परिवार उसे खरीद पाने में असमर्थ हैं। सूखे बर्तनों की खामोशी कहानियाँ हर गली, हर तंबू शिविर में बिखरी पड़ी हैं। खान यूनिस के बाहर, एक अस्थायी शिविर में मरियम अल-नज्जार अपने छह बच्चों समेत ग्यारह सदस्यों के परिवार के लिए केवल चार डिब्बाबंद ...