दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...
संपादकीय लेख: सूडान संकट – इतिहास से वर्तमान तक एक अंतहीन त्रासदी Keywords- Sudan crisis, civil war, Darfur, RSF, humanitarian disaster. सूडान एक बार फिर वैश्विक सुर्खियों में है, लेकिन इस बार भी कारण वही है – हिंसा, गृहयुद्ध और मानवाधिकारों का भयावह उल्लंघन। हाल ही में सूडान के दारफुर क्षेत्र में दो राहत शिविरों पर हुए हमले में 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जिनमें मानवीय सहायता कर्मी और बच्चे भी शामिल हैं। यह घटना सिर्फ एक युद्ध अपराध नहीं, बल्कि एक देश की निरंतर होती मानवता की पराजय है। लेकिन इस संकट को समझने के लिए हमें सूडान के इतिहास में झांकना होगा, जहां वर्षों से चल रहे संघर्ष की जड़ें छिपी हैं। इतिहास के गर्भ में सूडान का संकट सूडान अफ्रीका का एक विशाल देश है, जो 1956 में ब्रिटेन और मिस्र से स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता के बाद से ही यह देश जातीय, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं के कारण टकराव का केंद्र बन गया। उत्तर सूडान, जो मुख्यतः मुस्लिम और अरबी बोलने वाला है, और दक्षिण सूडान, जो अधिकतर ईसाई और आदिवासी समुदायों का है, के बीच द्वंद्व लंबे समय तक चला। 1955 से ले...