दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...
सिंधु जल संधि और भारत-पाकिस्तान के मध्य नदी जल विवाद:एक संतुलित दृष्टिकोण परिचय सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हस्ताक्षरित एक ऐतिहासिक समझौता है, जो दक्षिण एशिया में जल संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में अपनी अनूठी भूमिका निभाता है। इस संधि का उद्देश्य सिंधु नदी प्रणाली के जल के वितरण को सुचारू बनाना और दोनों देशों के बीच संभावित जल विवादों को हल करना था। हाल के वर्षों में, यह संधि एक महत्वपूर्ण विवाद का विषय बन गई है, जिसमें पाकिस्तान ने भारत द्वारा जल संसाधनों के उपयोग को लेकर आपत्तियाँ जताई हैं। हाल ही में, विश्व बैंक द्वारा नियुक्त 'निष्पक्ष विशेषज्ञ' समिति ने भारत के रुख का समर्थन किया है, जो इस विवाद के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इस लेख में, हम इस संधि की पृष्ठभूमि, भारत और पाकिस्तान के दृष्टिकोण, विश्व बैंक की भूमिका और भविष्य की संभावनाओं का विश्लेषण करेंगे। सिंधु जल संधि की पृष्ठभूमि 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद, दोनों देशों के बीच जल संसाधनों का मुद्दा विवाद का विषय बन गया। सिंधु नदी प्रणाली, ज...