दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...
✍️ अकेलापन: स्वास्थ्य पर प्रभाव, सामाजिक चुनौतियाँ और समाधान। (UPSC GS Paper 2 & 4 के दृष्टिकोण से विश्लेषणात्मक लेख) ✅ भूमिका: आधुनिक जीवनशैली में अकेलापन एक गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य समस्या बनता जा रहा है। व्यक्ति चाहे भीड़ में हो या घर में, सामाजिक संपर्क की कमी उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित करती है। अकेलापन न केवल समय से पहले मृत्यु का जोखिम बढ़ाता है, बल्कि यह तनाव, अवसाद, मोटापा, हृदय रोग और अन्य गंभीर बीमारियों को भी जन्म दे सकता है। विशेष रूप से भारत जैसे समाज में, जहाँ परिवार और समुदाय का महत्वपूर्ण स्थान है, अकेलापन एक सामाजिक चुनौती के रूप में उभर रहा है। यह विषय UPSC GS Paper 2 (Governance & Social Issues) और GS Paper 4 (Ethics & Society) में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सामाजिक न्याय, मानसिक स्वास्थ्य नीति और समाज में नैतिक मूल्यों से संबंधित है। 🔥 1. अकेलापन: परिभाषा और स्वरूप अकेलापन का अर्थ शारीरिक रूप से अलग-थलग होना नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक स्थिति है, जहाँ व्यक्ति सामाजिक रूप से कटा हुआ महसूस करता है। प्रकार: 🔹 स्थिति आधारित अकेल...