दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 27 अप्रैल 2025 1-नये भारत में पितृत्व के अधिकार की पुनर्कल्पना सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से तलाकशुदा और अविवाहित पुरुषों के सरोगेसी के अधिकार को लेकर मांगा गया जवाब एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस की शुरुआत का संकेत देता है। महेश्वर एम.वी. द्वारा दायर याचिका केवल व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परिवार, पितृत्व और व्यक्तिगत गरिमा के बदलते मायनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाती है। वर्तमान कानूनी परिदृश्य सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 एक नैतिक और कानूनी प्रयास था, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकना और मातृत्व के शोषण को समाप्त करना था। परंतु, इस अधिनियम में सरोगेसी का अधिकार केवल विधिवत विवाहित दंपतियों और विधवा या तलाकशुदा महिलाओं तक सीमित किया गया, जबकि तलाकशुदा अथवा अविवाहित पुरुषों को इससे बाहर कर दिया गया। यह प्रावधान न केवल लैंगिक समानता के सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 ...
जब सत्ता अभिव्यक्ति से डरती है: हार्वर्ड विवाद और लोकतंत्र की असली परीक्षा "एक सशक्त लोकतंत्र वह होता है जहाँ विश्वविद्यालय विचारों की प्रयोगशाला हों, सत्ता के प्रचार स्थल नहीं।" अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्था हार्वर्ड यूनिवर्सिटी आज उस स्थिति में है जहाँ उसे न केवल अपनी अकादमिक प्रतिष्ठा बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूलभूत सिद्धांतों की रक्षा के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ रहा है। ट्रंप प्रशासन द्वारा $2.2 अरब के संघीय अनुदान को फ्रीज़ करने का निर्णय न केवल एक राजनीतिक प्रतिशोध का प्रतीक है, बल्कि यह अमेरिका और विश्व भर में शिक्षा और लोकतंत्र के भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी भी है। घटनाक्रम का सारांश हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने हाल ही में ट्रंप प्रशासन की उन नीतियों का मुखर विरोध किया, जिनका उद्देश्य विश्वविद्यालय परिसरों में छात्र आंदोलनों और राजनीतिक विरोध को नियंत्रित करना था। इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि संघीय सरकार ने विश्वविद्यालय को दिए जाने वाले अरबों डॉलर के अनुदान को रोक दिया। सरकार का तर्क है कि ये अनुदान 'राष्ट्रीय हितों' के विरुद्ध ...